।। चिंगारी एक घमंड का ।।
शुरूआत में स्वयं को सामने वाले से ज्यादा मजबूत दिखाने के लिए उस समय थोड़ी देर के खातिर गुस्सा प्रदर्शित करना...आपके लिए बाद में काल बन सकता है। क्यों ना आप यह सोचते हो कि यह कर्तव्य सिर्फ अभी के लिए ही कर रहा हूँ , बस! किसी तरह काम हो जाए...फिर बाद में नहीं करूँगा। लेकिन यह धीरे-धीरे आप पे हावी होने लगता है और आप इसके जाल में पूरी तरह फंस जाते हैं। आपका एक नया व्यक्तित्व सामने आने लगता है। जो आप इससे पहले थें अब उसे आप बिल्कुल खो चुके होते हैं.........और एक नव 'क्रोधदेह' यानी क्रोध से बना एक नया शरीर  स्थान ले चुका होता है, विनित देह के स्थान पर।
मस्तिष्क पे एक घमंड है
चिंगारी बन उकसा रहा
प्रचंड अग्नी मुझमें है
व्यक्तित्व मेरा जला रहा
भस्म इसका प्रमाण है
स्वयं इसमें धधक रहा
प्रत्येक क्षण ललकारता है
विपरीत एक क्रोध बन रहा
एक नव 'क्रोधदेह' बन गया है
विनीत देह का क्षय हो रहा है
सम्पूर्ण खोखला आचरण है
खण्ड- खण्ड अहम भर रहा 
                                                             -  ©ps प्रकाश साह
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