Email Subscription

Enter your E-mail to get
👇👇👇Notication of New Post👇👇👇

Delivered by FeedBurner

Followers

Tuesday, 26 November 2019

फ़क़ीर हूँ (Fakir hunh)........-prakash sah


फ़क़ीर हूँ - FAKIR HUNH - Prakash sah - UNPREDICTABLE ANGRY BOY -  www.prkshsah2011.blogspot.in


  
मेरे लिए...
   आरंभ क्या! अंत क्या!
   अंत ही आरंभ है,
   आरंभ का ही अंत है।
   मैं ही आरंभ करूँमैं ही अंत करूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
        सब शून्य’ है।
हाँ मैं...
     शून्य हूँ...!!        फ़कीर हूँ...!!
     फ़कीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   जन्म क्या! मृत्यु क्या!
   जन्म ही परमात्मा हैं,
   मृत्यु ही परमात्मा हैं।
   मैं लिन हूँमैं विलिन हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब अक्षुण्ण’ है।
हाँ मैं...
     अक्षुण्ण हूँ...!!    फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   उजाला क्या! अंधेरा क्या!
   दीये का ही जला हूँ,
   दीये के ही तले हूँ।
   मैं ही अकेला हूँमैं ही बाती हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब पूर्ण’ है।
हाँ मैं...
     पूर्ण हूँ...!!         फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   अपना क्या! पराया क्या!
   दुनिया ही अपना है,
   पराया कोई जन नहीँ।
   मैं ही पास दिखूंमैं ही दूर दिखूं।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब एकात्म’ है।
हाँ मैं...
     एकात्म हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   कम क्या! ज्यादा क्या!
   कम ही ज्यादा है,
   ज्यादा से ही दूरी है।
   मैं अर्पित हूँमैं समर्पित हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक 'फ़क़ीर' हूँ।
मेरे लिए...
         सब क्षणिक’ है।
हाँ मैं...
     क्षणिक हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   अमीरी क्या! गरीबी क्या!
   स्वयं ही गरीबी ओढ़ी,
   स्वयं ही अमीरी छोड़ी।
   मैं ही कारण हूँमैं ही साधारण हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
                                      सब विचार’ है।
हाँ मैं...
     विचार हूँ....!!     फ़क़ीर हूँ...!!
                                  फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   घर क्या! वन क्या!
   वन में ही जीवन है,
   स्वयं के ही खोज में।
   मैं ही भ्रमण करूँमैं ही भजन करूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब अनिश्चित’ है।
हाँ मैं...
     अनिश्चित हूँ...!!  फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   न्याय क्या! नियम क्या!
   स्वभाव ही नियम है,
   बदलाव ही न्याय है।
   मैं ही आकार लूँ. मैं ही स्वीकार लूँ
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब प्रकृति’ है।
हाँ मैं...
     प्रकृति हूँ....!!     फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   वचन क्या! प्रवचन क्या!
   सिध्दांत ही वचन है,
   प्रवचन में ही व्यक्तित्व है।
   मैं ही तरंग हूँमैं ही बेरंग हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ
मेरे लिए...
         सब प्रत्यक्ष’ है।
हाँ मैं...
     प्रत्यक्ष हूँ...!!      फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
                                         धूप क्या! छाँव क्या!
   धूप ही कर्म है,
   छाँव ही कर्म का फल है।
   मैं ही सूत्र हूँमैं ही उन्मुक्त हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब आशीष’ है।
हाँ मैं...
     आशीष हूँ...!!    फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!
                                                                         ©prakashsah



***
click now👇👇
Share on Whatsapp

अगर आपको मेरा ब्लॉग अच्छा लगा तो 
इसे FOLLOW और  SUBSCRIBE करना बिल्कुल ना भूलें।

इस ब्लाॉग के नए पोस्ट के notification को  E-mail द्वारा  पाने के लिए  SUBSCRIBE कीजिए।👇

Enter your email address:


Delivered by FeedBurner

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏


©prakashsah
UNPREDICTABLE ANGRY BOY
PRKSHSAH2011.BLOGSPOT.IN
P.C. : GOOGLE

16 comments:

  1. अति सुंदर लेखन... फ़कीर की फ़कीरी सुंदर विश्लेषण।
    मन में जब शुद्ध वैराग्य उत्पन्न होता है तब जीवन के प्रति सम्मोहन भंग हो जाता है और ऐसे भावों की धारा फूट पड़ती है।शुद्ध, निर्मल पवित्र।

    ReplyDelete
    Replies
    1. इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, दी!

      Delete
  2. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरूवार 28 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी भईया अवश्य।
      काफी समय बाद मेरी किसी रचना का चयन किया है आपने। बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद आपका।

      Delete
  3. वाह!!अद्भुत सृजन प्रकाश जी ।
    आपने तो मीरा बाई की याद दिला दी ।
    करना फकीरी फिर क्या दिलगीरी ,सदा मगन में रहना जी ..।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपने बहुत बड़ी बात कह दी। इस सम्मान के लिए आपका धन्यवाद।

      Delete
  4. वाह !बेहतरीन सृजन
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद।

      Delete
  5. वाह !!! फ़कीर की फकीरी को शब्दों में सार्थक करती अत्यंत प्रभावी रचना |अध्यात्मिक पथ के अनुगामी फकीर को इनसे बेहतर शब्दों में कोई लिख ना पाता | हार्दिक शुभकामनायें प्रिय प्रकाश | पता नहीं क्यों शायद मैं बहुत दिन के बाद आपके ब्लॉग पर आई हूँ | या तो आपने नहीं लिखा या फिर शायद मैं ही पढ़ नहीं पाई | लिखते रहिये | मेरी दुआएं आपके लिए |

    ReplyDelete
    Replies
    1. अब, क्या कहूँ...रेणु दी!! बस समय के कमी के कारण पीछले कुछ महिनों से मैं अपने ब्लॉग पर कुछ ज्यादा सक्रिय नहीं रह पाया।
      खैर...आपके द्वारा प्रसंशा से मैं फुले नहीं समा रहा हूँ। ऐसी प्रोत्साहना से एक नई उर्जा का संचार होता है।
      काफी दिनों बाद आप मेरे ब्लॉग पर वापस आयीं...इसको मैं अपनी सफलता के रूप में ले रहा हूँ। यूँ ही आशीर्वाद बनाए रखिए।
      आभार एवं धन्यवाद।

      Delete
  6. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  7. कोई बात नहीं प्रकाश , व्यस्तता के बीच आप इतना कर पा रहे हैं, ये बहुत है। आप अच्छा लिखते हैं,
    अपना लेखन माँजते रहिये। शुभकामना💐💐💐💐

    ReplyDelete