खूबसूरत वादियों के गोद में
एक बालक
स्वप्न जिकर उठा एक बालक,
धिरे-धिरे छँटी ये रात की काली चादर,
उभरा एक
अनजाना-सा दृश्य,
अब ये सामने
कौन-सी विशाल चादर?
छँटने के बजाए बढ़ रही सवेर के अंजोर में,
चार पहर के अलावा,अब आया कौन-सा ये नया पहर?
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चार पहर के अलावा,अब आया कौन-सा ये नया पहर?
बड़ी आँखों से कुछ क्षण तक यूँ ही देखा,
बनकर निकला
एक खूबसूरत वादियों में का पहाड़,
दाएँ जंगल, बाएँ जंगल, अडिग पहाड़ पे चढ़ता जंगल,
इन मनमोहक दृश्यों को समेटकर, बालक का मन हुआ चंचल।
फिर से एकटक, विशाल पहाड़ को बालक ने देखा,
फिर से एकटक, विशाल पहाड़ को बालक ने देखा,
मन में कुछ सवाल उभरा-
पहाड़ के उस पार क्या होगा?
कोई भूत होगा, या जंगल का राजा शेर होगा?
कोई बोला उस पार, झर-झर झरना का पानी गिरता,
कोई बोला उस पार, झर-झर झरना का पानी गिरता,
कोई बोला उस पानी में नाव है चलता ।
बालक को और जानने की उत्सुकता जगी,
उसे उस पार जाने का हुआ मन।
वह ढूँढा जाने का हर उपाय
पर न मिला उसे कोई हल।
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वह ढूँढा जाने का हर उपाय
पर न मिला उसे कोई हल।
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अब दिखा वह मनमायुस-सा अभासीत बालक,
कुछ पल पहले था कितना चंचल,
छोड़ अब ये जिद, जितना था उसमे हुआ खुश,
स्नान घर के झरना से ही, मन को किया प्रसन्न।
राह-राह चलकर, घूर्णन करती आँखों से
खूबसूरत वादियों को मन में रहा बसा।
राह-राह चलकर, घूर्णन करती आँखों से
खूबसूरत वादियों को मन में रहा बसा।
कोमल मिट्टी पर चलने की थी आदत,
कंकड़ भरे राह पर अब पाँव पड़ा,
चूभन हुई पर दर्द न हुआ,
आह निकला पर चीख की हवा न निकली।
भूलकर अपनी ये सब दशा,
इन खूबसूरत वादियों को, बालक मन में रहा बसा,
लौट अपने घर को
बाँट रहा वो अपनी अद्वितीय अनुभवों का नशा।
©ps
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