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Sunday, 23 May 2021

बचपन की हवाएँ | Prakash Sah

www.prkshsah2011.blogspot.in

 


आज मैंने फिर से

वही बचपन की

हवाओं को महसूस किया है,

जिन्हें मैं अब

बिलकुल ही भूल चुका था।

वो खुश्बू, जो मेरे साँसों को

एक अलग साज देती थी,

उसका रोम-रोम स्पर्श

मेरे मुख पे

एक मखमली मुस्कान देती थी,

आज वही हवाएँ

मेरी खिड़कियों से

सर-सर्राती हुई

मेरे बिस्तर तक पहुँच रही है,

जो मेरे कानों को तो

एक अलग

अनसुनी

लयबद्ध संगीत दे ही रही है

और उसी क्षण

जब भी मैं

खिड़कियों से

बाहर देख रहा हूँ

तो इन हवाओं के संग

बीच-बीच में

उन मेघ शयनों का आना

जैसे आँखों पे

पलकों का

धीरे से टहरना,

मानो ये मेरे दो अर्ध-नयनों को

मिठे स्वाद दे रहे हों।

और उन मेघों से छनकर

आती वो गुनगुनी धूप

मनोहरी

मेरी आँखों में

सुकून भरी रौशनी

भर रही है।

आज

फिर से

इन हवाओं ने

मुझसे बिछुड़ चुके

उन सभी मिठे-मिठे

एहसासों को

बचपन के ख़जाने से

ढूँढ़कर

आज मेरे

थक चुके मन को सहला रही है।

 -प्रकाश साह

230521


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BG P.C. : YourQuote.in

P. Editing : PRAKASH SAH