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Thursday 24 January 2019

उसकी ओर बह जाता हूँ -prakash sah



जब हम काम से थके-हारे, घर वापस आते हैं तो हम कुछ ऐसा ढूंढते हैं जिससे हमारा मन बहले और मन को सुकून मिले....और जिंदगी के सारे बोझ को कुछ देर के लिए अलग रख..वहाँ बैठ उनके साथ कुछ समय बिताया जाये। 

            इसी खोज के दौरान मुझे एक दिन बालकनी में बैठी... एक छोटी-सी नन्ही-सी पंछी से मुलाकात हो जाती है। और फिर यह मुलाकात शाम को कुछ क्षण के लिए रोज होने लगी। इसे मैं सत्य मानूँ या भ्रम...कि अब तो पंछी भी इंतजार करने लगी थी। शायद बहुत हद तक हम दोनो भावनात्मक रूप से जुड़ गये होंगे। 
इसी पंछी के लिए अब मेरा सारा 'मोह का बांध' टूट गया था।..... 
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           "अगर पशु-पक्षी को आप थोड़ा भी प्रेम करें तो वो आपको बदले में दोगुना ही वापस करते हैं। इस रचना में इसी भाव के भावनाओं को बताने की कोशिश कर रहा हूँ ।"

.....इस दौरान हमारे अंदर एक कशमकश पैदा हो जाती है जब हम अपने किसी प्रिय या प्रेयसी के 'साथ का वक्त' कहीं और व्यतीत करने लगे...और उनके प्रति हमारा मोह कम होने लगे(अगर उन्हें ऐसा महसूस हो तब यह कशमकश और बढ़ जाता है) और यह मोह कहीं और नहीं...एक नन्ही-सी पंछी के लिए बढ़ जाए तब??? इस कशमकश में हमारे दिल का हाल क्या होगा??
यूँ ही कभी एक दिन जब हम अपनी प्रेयसी के साथ बैठे हों और हूबहू  वैसी ही एक पंछी सामने वाले घर की खिड़की पे आ कर बैठ जाए...तब पहली पंछी के लिए अपने उस लगाव के बारे में बताते हुए कहते हैं- 

उसकी ओर बह जाते हैं (Uski Oor Beh Jate Hain) - UNPREDICTABLE ANGRY BOY www.prkshsah2011.blogspot.in

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।। उसकी ओर बह जाते हूँ ।।
...
मेरे मोह के बांध का टूटना
 तेरी मासूम सूरत नहीं...जान-ए-जाँ !!!
.....
 मेरे बालकनी में बैठी
मेरे आस में
भूखी प्यासी...
        ...एक छोटी-सी नन्ही-सी पंछी है
जो हर रोज शाम
मेरा हाल लेने आती है।
.......कैसे मैं उसका ख्याल ना रखूँ !!!

पूरे दिन की थकान, यूँ मिट जाती है...

जब वो अपनी छोटी-सी चोंच से
मेरी ओर देखते हुए...
             .....चूँ-चूँ-चूँ-चूँ करती है।

उसकी चुलबुली आँखें

         उसमें मैं खो जाता हूँ।
जान-ए-जाँ ! मुझे माफ करना....
तुम्हें मैं भूल जाता हूँ।
        ..
मैं तो बस उसका...
        ....दो पल ही ख्याल रखता हूँ।
वो हर रोज सुबह
        अपनी एक नयी सहेली के साथ
पास के बैर के डाल पे बैठ
मेरे लिए तारिफों के कसीदें
उसको सुनाते हुए...
.....मैं सुनता हूँ.....
...
......और मेरे मोह के बाँध
आँखों से होते हुए...
       ......उसकी ओर बह जाते हैं।
...
हाँ !!! ये बस.....
     वो शाम को बिताए गयें
    'दो पल' के ही परिणाम है।
हाँ वो दो पल के ही परिणाम है...

                           ©ps 'प्रकाश साह'


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27 comments:

  1. Ur love towards a little bird is totally match from u. ..My unpredictable boy🐦

    ReplyDelete
  2. This is the first time you appreciate me very beautifully. Thanks Bro!

    ReplyDelete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद दी। मैं अवश्य उपस्थित होऊंगा। सादर प्रणाम।

      Delete
  4. बहुत ख़ूबसूरत अहसास...

    ReplyDelete
  5. बहुत मीठा अहसास। बधाई और आभार।

    ReplyDelete
  6. अद्भुत अप्रतिम इतना सात्विक अहसास इतने शुभ्र भाव सच आलोकिक। सुंदर अतिसुन्दर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी।

      Delete
  7. प्रकृति में अनंत खूबसूरती और प्यार भरा है बस देखने वाली नज़र और महसूस करने वाला दिल होना चाहिए ,बहुत सुंदर... भाव ,सादर नमन

    ReplyDelete
    Replies
    1. भावुक कर दिया आपने। हृदय से बहुत-बहुत आभार आपका।

      Delete
  8. बहुत सुंदर.....आदरणीय।
    ....मुझे माफ़ करना ...
    तुम्हें मैं भूल जाता हूँ..........गजब !

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया रविन्द्र जी।

      Delete
  9. और मेरे मोह के बाँध
    आँखों से होते हुए...
    ......उसकी ओर बह जाते हैं। बेहद खूबसूरत भाव....., मन्त्रमुग्ध हूँ आपकी रचना पढ़ कर ।

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  10. उसकी चुलबुली आँखें
    उसमें मैं खो जाता हूँ।
    जान-ए-जाँ ! मुझे माफ करना....
    तुम्हें मैं भूल जाता हूँ।
    वाह!!!!
    बहुत सुन्दर.... लाजवाब...।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

      Delete
  11. जान-ए-जाँ ! मुझे माफ करना....
    तुम्हें मैं भूल जाता हूँ।
    वाह!!!!
    बहुत सुन्दर....

    ReplyDelete
    Replies
    1. अविलंब के लिए माफी चाहता हूँ।
      प्रशंसा हेतु आपका आभार।

      Delete
  12. Chandrayaan 2 poem la, m your ayush

    ReplyDelete