।। देर रात अंधियारे में ।।
Nightingale |
तु क्यूँ चहकती रात के अंधियारे में,
क्यूँ तेरे पेट का मिलाप नही हुआ स्वादिष्ट आहारों से !
तुझे नही दीखता अब मैं सो गया, गहरी निंदों में,
तु पहले क्यूँ नही आयी, जा अब मै ना निकलूँ, इस गर्म रजाई से ।
मेरी एक लालसा तु समय पर आया कर, जिससे डूब जाऊँ तेरी स्वरगूँजन में ।
तु बार-बार क्यूँ भूल जाती, मै आलसी हूँ लड़कपन से ।
मुझे मालूम चला तु क्यूँ भुखी रहती, तुझे जो पसंद है खाना मेरे हाथों से ।
अच्छा ! इसलिए तु चहकती रोज देर रात के अंधियारे में
तुझे जो पसंद है खाना मेरे हाथों से
तुझे जो पसंद है खाना मेरे हाथों से...
©ps
सुंदर भाव समेटे सहज रचना....
ReplyDeleteलिखते रहें। शभकामनाओं सहित
बहुत बहुत धन्यवाद, पुरूषोत्तम जी ।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद लोकेश जी
Deleteतु बार-बार क्यूँ भूल जाती, मै आलसी हूँ लड़कपन से
ReplyDeletebehad shandar
saral shabdon me sunder rachna likhte hai aap....shubhkamnayen
आपके इन प्रशंसनीय शब्दों के लिए आभार।
Deleteहर एक पंक्तियाँ अद्भुत सुन्दर है जिसे आपने बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद, अनुराधा जी।
Deleteसम्वेदना का स्वर मुखरित करती मर्मस्पर्शी रचना. रचनाकार का दृष्टिकोण प्रकृति के सूक्ष्म अवलोकन को बख़ूबी अभिव्यक्त करता है. सुन्दर रचना. बधाई एवम् शुभकामनाएं. लिखते रहिये.
ReplyDeleteआपका भी अवलोकन किसी कृति के प्रति सदैव सटीक होता है। आपके प्रतिक्रिया का मुझे सदैव प्रतिक्षा रहता है। रचना के प्रशंसा में सुन्दर शब्दों और शुभकामनाएं के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
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