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Friday 6 January 2017

मन में सम्मान की लौ जला कर चले हैं ( Mann mein samman ki lau jala kar chale hain) -PS

I'm very hurt to see & hear the terrifying news how some youths of our generation misbehaved and did evil deeds with girls & women of Bengaluru and Delhi on the day of New Year and on the further day.
This is very hell like situation and it is not to be tolerated.

।। मन में सम्मान की लौ जला कर चले हैं ।।

सड़कों पर चलते दरिंदों का अंबार है,
कूड़ा हैं, करकट हैं, गंदे नालियों के खून हैं।
जब जि चाहा खोला, जब जि चाहा बंद किया,
जैसे महिलाओं को समझते संदूक की दराज हैं।
सोच का अभाव है, नज़र में ना शर्म - न हया है।
आधुनिकता के नाम पर तर्क रखने वालों
तेरी छोटी बुद्धि का तर्क ‘कुतर्क’ है।
तू अपनी हरकतें संभाल ले 
या फिर अपनी बरकतें गँवा दे।
तेरी पीढ़ी के साथ हम भी उगे हैं...
हम चौक-चौराहों पे मोमबत्ती नहीं,
मन में सम्मान की लौ जला कर चले हैं।


Sunday 1 January 2017

जश्न इस बार नई होगी.......... -prakash sah

जश्न इस बार नई होगी  ( JASHN ISS BAAR NAYI HOGI ) - prakash sah - Unpredictable Angry Boy -  www.prkshsah2011.blogspot.com


।। जश्न इस बार नई होगी ।।


**(1)**

सरहदें तोड़ दूँ, सरहदें जोड़ दूँ
हर हद पार कर दूँ
जिससे बंदिशें बनती हैं,
जिससे मोहब्बतें बढ़ती हैं
काबु ना होगा, दिशा ना होगी
पर हिम्मत-ए-खुदा होगा,
जिससे बेपर्दा तो हम होंगे
पर दुनिया मायूसी की जश्न न मनाएगी।
पन्नें पलटते हैं, पलटते रहेंगे,
तारिखें भी वही होंगी पर गिनती बदल जाएगी,
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
   पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...


**(2)**

अमन से जी लूँ, अमन भी ला दूँ
  हर वो माहौल बना दूँ...
जिससे दूरियाँ बनती है,
जिससे नजदीकियाँ बढ़ती है।
हरा पान मुख में रंग भर दे,
ज़रा मान हर कोई को दे दे,
उल्लास-उत्साह संग आज मना ले,
कल कौन जाने!
कल कब हाथ की उंगलियाँ छूट जाएंगी?
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
   पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...


**(3)**


सजा मै दे दूँ, सजा मै ले लूँ,
न्याय की हर दरवाजा खटखटा दूँ...
जिसने भी जुर्म होते देखा है,
जिसने भी जुर्म किया है,
न्यायमूर्ती को खड़ा कर दूँ, संविधान पढ़ा दूँ,
कहीं छूट न जाए
कोई मासूम की न्याय की तड़पन की आग।
सपनें भी होंगे, ख्वाहिशें भी होंगी
ज़िद भी होगी, तड़पन भी वही होगी
पर इस पीढ़ी की उर्जा मे जोश नई होगी...
इंसानियत को बचाएँगे अपने अहम को हटा कर,
सहम-सहम कर, हिम्मत दिखा कर,
पुरानी वही पहचान होगी
पर वो इंसान की नई गाथा होगी।
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
   पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...


**(4)**


दुआ दे दूँ, दुआ माँग लूँ
   हाथ जोड़ कर सिर झुका लूँ...
खुद को मैं बड़ा बना लूँ,
खुद को मैं छोटा बना लूँ
जिससे ना कोई मायने बनेंगे,
जिससे ना कोई दायरें बनेंगे।
सबका सम्मान बराबर, सबका हो मान बराबर
तब बढेंगे, तन बढेंगे, मन बढेंगे,
जहाँ को हम जन्म लिए, वहीं से जुड़े सदैव रहेंगे। 
हाँ...शीघ्रता में देर होगी,
सर्द की रूग्ण भोर होगी,
स्वर की अमर गूंज वही होगी,
इस नव वर्ष की पहली किरण के संग
नए लोग मिलेंगे पर रश्म नई होगी।
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
   पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...
                           -prakash sah


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