Email Subscription

Enter your E-mail to get
👇👇👇Notication of New Post👇👇👇

Delivered by FeedBurner

Followers

Wednesday 14 November 2018

सुबह के छाँव में (Subah ke chhaon mein : How to wake up early morning) -ps

Go to Full Screen View     

subah ke chhav mein - prkshsah2011.blogspot.in


।। सुबह के छाँव में ।।


सुबह के छाँव में

उठ जाना

हटा गर्म रजाई को।

मेरी ये सलाह है-

अबकी बीती रात को

भूल जाना

कि तुम्हारा कोई इंतजार

करता है...देर रात तक।

जिससे तुम उठ जाओगे

सुबह के छाँव में।

...

भारी-भारी आँखों से

लिया गया मुँह से

जम्हाई,

लाता कुछ बूंदें, आंसुओं के

तुम्हारी इन

अधूरी देखी हुई सपनों के

नयनों में।

कुछ ऐसा ही नज़ारा-

घासों से भी

फूट रही है...ओस की बूंदें

जैसे बादल के भी रह गये हो

कुछ सपनें अधूरे।

इस हड़बड़ाहट में

कि सूरज

वक़्त पे उठ जाते हैं

सुबह के छाँव में।

...

तुम्हें रोज़ सूरज का

अनुसरण करना होगा।

बादल का

हड़बड़ाहट नहीं लेना है।

जिससे

तुम रोज़ उठ जाओगे

सुबह के छाँव में।



follw the blog UNPREDICTABLE ANGRY BOY www.prkshsah2011.blogspot.in
> Photo from Google search

18 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर...प्रकृति के संग गूँथे गये भाव बेहद प्रभावशाली हैं आपकी रचना

    जी भाई, हम भी सीख ही रहे हैं लिखना अभी, बहुत नहीं जानते हैं..पर आपसे विनम्र निवेदन है मात्रा संबंधी त्रुटियों पर ध्यान दीजिए।
    जैसे-छाव=छाँव
    ओंस=ओस
    सुरज=सूरज
    गएंं=गये
    आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे। रचना बहुत अच्छी है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. इसमें अन्यथा लेने वाली कोई बात नहीं है श्वेता दी। सच्च कह रहा हूँ मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि मेरी गलती को कोई सुधारने वाला है। जैसे ही मैंने आपकी प्रतिक्रिया पढ़ा तुरंत मैने सुधार कर दिया। मैं तो चाहूँगा आप हमेशा इसी प्रकार मेरे प्रति रहें।

      मार्गदर्शन और रचना की प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

      Delete
  3. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनुराधा जी।

      Delete
  4. बेहतरीन भाव सृजन

    ReplyDelete
  5. प्रिय प्रकाश -- प्रकृति और इंसान के शाश्वत रिश्ते को एक संवेदनशील कवि ही समझ सकता है | बहुत ही सीधे सरल तरीके के आपने अपनी बात कहकर रचना को रोचक और प्रभावी बना दिया है |

    जैसे बादल के भी रह गये हो
    कुछ सपनें अधूरे।
    इस हड़बड़ाहट में
    कि सूरज
    वक़् पे उठ जाते हैं
    सुबह के छाँव में।
    बहुत ही सुंदर बात लिखी आपने | अधूरे सपने ही इन्सान को नये संघर्ष के लिए तैयार करते हैं | मेरी हार्दिक शुभकामनायें आपके लिए |


    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया बहुत रोचक होती है मैने कई स्थानों पर पढ़ा है। आपकी विवेचन करने की योग्यता बहुत ही भिन्न और अद्भूत है।
      सहृदय आभार आपका।

      Delete
  6. आपका कल्पनालोक गहरे भावों से लबरेज़ है भाई प्रकाश जी। शब्द-भंडार बढ़ाइए और आदरणीया श्वेता जी की सलाह पर गौर कीजिये। इस सुन्दर रचना के लिये बधाई एवं शुभकामनाऐं। लिखते रहिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बिल्कुल भईया आपका सुझाव सर आँखों पे। श्वेता दी की बातों पर मैं कार्य आरंभ भी कर दिया हूँ। धन्यवाद।

      Delete
  7. प्रकृति से इंसानी रिश्ता गहरा है ...
    इसे समझना कवी मन को सहज कर देता है ... अच्छी रचना है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. विलंब प्रतिक्रिया के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
      प्रोत्साहन व सराहना के लिए सहृदय आभार...।

      Delete
  8. बहुत ही सुंदर बात गहरे भावों से लबरेज़

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी प्रतिक्रिया 'अनुभवी' है। धन्यवाद।

      Delete
  9. Khubsurti se sajaya h aapne es subha ko , very good morning 🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, सादर धन्यवाद आपका।

      Delete