अशुद्ध मन में पूजा तेरी,
लक्ष्य काे भेदा नहीं।
"अशुद्ध हुआ तेरा मन"
तुमने इसे जाना कैसे?
'शुद्धता' क्या अभी शेष है!
या, फिर यह भी तुम्हारा
काेई नया भेष है!
क्याेंकि बेवज़ह कुछ भी हाेता नहीं...
-Prakash Sah
आप सभी का इस ब्लॉग पर स्वागत है। इस ब्लॉग को लिखने का कुछ खास उद्देश्य नहीं है। एक इंसान को अपने जीवन में हर दिन कई भाव विचारों से गुजरना पड़ता है। बस इन्हीं भावों को कविताओं के माध्यम से आपसब के साथ साझा करने का मुझे यह एक उचित स्थान लगा। आप मेरे लिखे रचनाओं के माध्यम से इस ब्लॉग के नाम का सार्थक परिभाषा भी जान सकते हैं। मेरी रचनाएँ कुछ काल्पनिक हैं और कुछ वास्तविक हैं। इससे किसी के जीवन में मार्गदर्शन मिल जाये तो बस यह एक संयोग मात्र होगा। [अंतिम पंक्ति आपके चेहरे पे मुस्कान लाने के लिए था]
अशुद्ध मन में पूजा तेरी,
लक्ष्य काे भेदा नहीं।
"अशुद्ध हुआ तेरा मन"
तुमने इसे जाना कैसे?
'शुद्धता' क्या अभी शेष है!
या, फिर यह भी तुम्हारा
काेई नया भेष है!
क्याेंकि बेवज़ह कुछ भी हाेता नहीं...
-Prakash Sah