बाढ़ में बादल
बदइंतजामी से बेहाल है बादल
कहीं है जंगल फांका-फांका,
कहीं भूखंड है पड़ा विरान।
असमंजस में बादल, कहीं फूट पड़ा
जन जीवन हुआ इतर-बितर।
असमय व्यवहार इसका,
हदें तोड़ दी जरूरतों की।
उभर पड़ी विस्थापना की समस्या,
बादल ये देख-देख सोच में पड़ा-
मैं अप्राकृतिक हुआ कैसे?
दोष इसमें किसका है?
मेरा या मानवों के भौतिक सुख का?
- prakash sah (©ps)
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