आज 5 मई है और मैं आपसब को बताना चाहता हूँ कि आज मेरे दोस्त OMKAR NARAYAN SINGH का जन्मदिन है। उसके साथ मेरा मित्रता से अधिक भ्रातृत्व की आत्मीयता है। हम एक दूसरे को भाई कहकर ही संबोधन करते है। पर ऐसा कोई दिन नहीं है जब हमदोनो के बीच थोड़ा-बहुत नोकझोंक ना हो......लेकिन हमदोनो कभी भी इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं। मेरा मानना है कि बिती बात पर ज़्यादा चर्चा नहीं होनी चाहिए......स्पष्टीकरण के लिए तो बिल्कुल नहीं। वैसे अधिकतम समय हमारा बहस-नोकझोंक किसी सार्थक विषय पर ही होता है।
यह कविता उसी के लिए है। वैसे इस कविता को तो मैंने बहुत पहले लिखा था....पर कभी भी किसी के साथ साझा नहीं किया था....ना ही किसी जगह छापा था। आज पहला अवसर है जो आप सभी के साथ इसे साझा कर रहा हूँ। मुझे पता है उसे बहुत अच्छा लगेगा।
इस कविता की एक पंक्ति में एक शब्द है...."प्राणों"। इसे अंग्रेजी के अक्षरों में लिखा जाए तो इस प्रकार है....PRAANO (प्राणों)........यह हम पाँच दोस्तों के नाम के शुरू का अक्षर है।
वो कागज़ ना होगा आम,
जिस कोरे कागज़ पे लिख दूँ तेरा नाम।
चूरा लाऊँ हर एक वो शाम,
जिससे करूँ तेरी गुण-गान।
तू ना है गुमनाम,
तू तो है ‘प्राणों का प्राण’।
बना दूँ तेरी एक मूरत,
हूबहू हो तेरी ही सूरत।
एक ख़ासीयत पत्थर की मूरत में होती है,
सालों-साल ना वो बदलती है,
घीस जाती है,
गिर कर टूट जाती है,
पर दूसरों की चाह में ना पड़ कर,
कभी ना खुद को बदलती है।
पत्थर को तराशकर ही बनते हैं मूरत,
ऐ मूरत ! तुझे बदलने की है ना
ज़रूरत।
तू जैसा है वैसा ही रह,
कर सभी के आशाओं का सम्मान।
अगर करे कोई तेरा अपमान,
तो बन जा फिर से पत्थर की मूरत,
ऐ मूरत ! तुझे बदलने की है ना
ज़रूरत.....
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