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Saturday 3 June 2017
Thursday 1 June 2017
नन्हे बालक की अल्हड़ बातें - prakash sah
खूबसूरत वादियों के गोद में
एक बालक
स्वप्न जिकर उठा एक बालक,
धिरे-धिरे छँटी ये रात की काली चादर,
उभरा एक
अनजाना-सा दृश्य,
अब ये सामने
कौन-सी विशाल चादर?
छँटने के बजाए बढ़ रही सवेर के अंजोर में,
चार पहर के अलावा,अब आया कौन-सा ये नया पहर?
चार पहर के अलावा,अब आया कौन-सा ये नया पहर?
बड़ी आँखों से कुछ क्षण तक यूँ ही देखा,
बनकर निकला
एक खूबसूरत वादियों में का पहाड़,
दाएँ जंगल, बाएँ जंगल, अडिग पहाड़ पे चढ़ता जंगल,
इन मनमोहक दृश्यों को समेटकर, बालक का मन हुआ चंचल।
फिर से एकटक, विशाल पहाड़ को बालक ने देखा,
फिर से एकटक, विशाल पहाड़ को बालक ने देखा,
मन में कुछ सवाल उभरा-
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