।। चिड़िया ।।
पंख जो फैलाती, अंबर को छूती
उड़कर ही उड़कर, आती है मुझपर
उड़कर ही जाती, उड़कर ही आती
थकती नही, बस प्यासी है चिड़िया
सरोवर है सूखा, नदी मिली तड़पती
बरसा बरसती नही, चिड़िया जाए कहाँ !
चिड़िया है चुगती, चुगती है दाना
कहती है, पानी तुम देने आना
कहती है, पानी तुम देने आना
कहती है, पानी तुम देने आना
गाँव का घर, गौरैया का आँगन
फूदकती ना दिखी, रूठ को गई चहकती गुँजन
शहरों में कहाँ, इनके खातिर कोई रखता मटका का घर
कबूतर ही एक वो, छज्जे-छतों पर रह जातें हर पहर
गर्मियाँ जैसे आती, कोयल कू-कूवाती
वनों का सिमटना, कारण है पेड़ों का कटना
घोसला कहीं कैसे दिखे, जब कोई डाली बची नही
व्यस्त दिनचर्या, अब सिर्फ इंसानों की बनती ये दुनिया
चिड़िया है चुगती, चुगती है दाना
कहती है- पानी तुम देने आना
कहती है, पानी तुम देने आना
कहती है, पानी तुम देने आना
सपनो को पंख लगाना, हमने चिड़ियों से ही सिखा
हवाओ को काटते, नीले आकाश मे भी इन्हें ही देखा
तोता-मैना की कहानी सबने है सुना
जो भी झूठ बोले, उसे काला कौआ काटे
पक्षियों की ऐसी कई कहानियाँ, बचपन से है सुनी
रामायण की स्मृतियां भी मन-मस्तिष्क में है बसी
दो पक्षी भाई- जटायु और सम्पाती की वो बलिदानी कथा
जब हरित माँ सीता की थी पता बताई, सुन जामवंत मुख रामव्यथा
प्रभु श्री राम को, देव पक्षी गरुड़ ने नागपाशमुक्त किया था
जब रावण पुत्र मेघनाथ ने बाणों से नागपाश किया था
भरे पड़े है इतिहास के ऐसे पन्ने
बस खाली पड़े है तो, सब पानी के भगोने
कैसे हम भूल गए, अपनी इन संस्कृतियों को ऐसे
चलो फिर से पशु-पक्षियों के प्रती प्रेमभाव दिखाए
चिड़िया है चुगती, चुगती है दाना
कहती है- पानी तुम देने आना
कहती है, पानी तुम देने आना
कहती है, पानी तुम देने आना
©ps
©ps
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