In the memory of our Gurudev Rabindranath Tagoreji on his birh anniversary (7 May).
This Poem of mine is only dedicated to him.
उनकी अनेकों खूबसूरत रचनाएँ है पर मेरी उन्हीं से उनके लिए एक छोटी रचना
Rabindranath Tagore (7/5/1861 - 7/8/1941) |
।।
मधुर स्वर ।।
मधुर स्वर कान से दिल में आई,
रुधिरनस से पुरे देह में समाई ।
रच-बस रही, मन में खो रही
प्रकृति के गोद में जैसे मन झूल रही ।
लययुक्त धीमी–धीमी मुखवचन बुलाती,
चेतना को पुरे विश्व भ्रमन करा रही ।
ना कोई सवाल–ना कोई जवाब किसी से
झपकते खुली आँखों में स्वप्न बसा रही,
बिन शीर्षक की अनगिनत कहानियाँ याद आ रही ।
शहर, कभी घर, कभी मिट्टी की शय्या,
तो कभी अंगना बुलाती,
सुलाती यही-जगाती यही, यही मधुर-स्वर
की बाती ।
कोमल कुसुम-सी सहलाती मधुर स्वर की आलेखें,
करुण तरंगों की संदेशों से ईश्वर के भी नम होती है आँखें ।
संतान-से इंसान इनके, करुणा विभोर
हुए ना रोक पाए,
कोई संभाले मन को या नम आँखों को, जो रोके से ना
रुक पाए ।
मधुर स्वर कान से दिल में आई,
मधुर स्वर कान से दिल में आई,
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