मैंने इस रचना को 2 नवम्बर 2019 को लिखा था लेकिन आज मैं इसे आपलोग के साथ साझा कर रहा हूँ। इसका भी एक हास्यास्पद कारण है और वह यह है कि इसका मुझे कोई सटीक शीर्षक नहीं मिल रहा था। यही एकमात्र कारण है कि मैं इसे अपने ब्लॉग पर छाप नहीं पा रहा था।
पर अंततः यह मेरी खोज़ कुछ दिन पहले ही पूरी हुयी। और फिर आज आपसब के सामने एक सटीक शीर्षक के साथ यह नीचे प्रस्तुत है।
हर कोई बीत जाए
ये मुम़किन नहीं
उनका देह नहीं तो
नाम ज़िंदा रहेगा
हर कोई बदल जाए
ये मुम़किन नहीं
उनका साथ नहीं तो
आशीष सदा रहेगा
हर कोई रूठ जाए
ये मुम़किन नहीं
व्यवहारों से
नहीं तो
यादों से मना
लीजियेगा
हर कोई नास्तिक
हो जाए
ये मुम़किन नहीं
भजन से आस्तिक
नहीं तो
सेवाभाव से बन
जाइएगा
-प्रकाश साह
021119
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सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteजी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteआशा पूर्ण सुंदर संदेश देती रचना,समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भ्रमण करें,आपका स्वागत है ।
ReplyDeleteजी अवश्य! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteआशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना,प्रकाश भाई।
ReplyDeleteइस स्नेह और प्रशंसा की खातिर बहुत-बहुत धन्यवाद आपका ज्योति दी!
Deleteबहुत सुंदर कविता साह जी
ReplyDeleteजी बहुत शुक्रिया आपका।
Deleteइस सादगी के सदके ! गागर में सागर. शीर्षक मिला तो खूब मिला. सरल भाषा में गहरी आस्था और आशा. अभिनन्दन.
ReplyDeleteवाह! मन बहुत प्रसन्न हुआ आपकी इस सुन्दर प्रतिक्रिया और स्नेह से। बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार आपका।
Deleteमेरी रचना को इतना स्नेह और सम्मान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद-आभार आपका।
ReplyDeleteहर कोई बदल जाए
ReplyDeleteये मुम़किन नहीं
उनका साथ नहीं तो
आशीष सदा रहेगा
एक प्रेरक चिंतन से अवगत कराती रचना प्रिय प्रकाश जी। हार्दिक शुभकामनाएं
रेणु दी, हृदय तल से आपका बहुत-बहुत धन्यवाद-आभार।
Deleteउनका देह नहीं तो
ReplyDeleteउनकी देह
इसपर मुझे भी संदेह है...विचार अवश्य करूंगा। आभार।
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