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Sunday, 27 October 2019

कहानी दिल की... -prakash sah

सुनिए इस कविता को मेरी आवाज़ में...👇👇



कहानी दिल की (kahani dil ki) - Prakash sah - UNPREDICTABLE ANGRY BOY -  www.prkshsah2011.blogspot.in



कहानी दिल की कहाँ से शुरू करूँ
शुरू होने से पहले ही खत्म हो गयी


ख्वाबों का दरिया था मैं
पर एक ख्वाब भी मेरा सच्च ना हुआ


वो इंतजार वाली घड़ी मेरे पास ही है
पता चला है, वो कहीं आसपास ही है


उड़ते अफवाहों को कितना सच्च मानूँ
मैं उसके दिल में था, ये कैसे जानूँ?


खैर अब तो ये सब, दूर की बात है
वो किसी दूसरे शहर में, किसी दूसरे के साथ है 


किसी सफर में जब भी अकेला रहता हूँ 
उसी को सोचकर कुछ लिखता रहता हूँ 


कारण का बस इतना ही कहानी है 
वो मेरे दिल में है, यही मेरी नदानी है 


यही मेरी कहानी है, यही मेरी कहानी है... 
- ©prakashSah




***
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©prakashsah
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Saturday, 19 October 2019

पहचान कौन ??? (Pehchaan Kaun???)

सरकारी दफ्तर में एक साधारण व्यक्ति और अधिकारी के बीच का संवाद एवं सरकारी दफ्तरों के दृश्य जहाँ आप इस नए भारत में महात्मा गाँधी और उनके विचारों को नए रूप में पाएँगे।
क्या आप हमारे नए 'गाँधी' को जानते हैं?
शायद इस सवाल का जवाब आप मेरे इस रचना में ढूँढ लें...

पहचान कौन ?


पहचान कौन (PEHCHAAN KAUN) - Prakash sah - UNPREDICTABLE ANGRY BOY www.prkshsah2011.blogspot.in


नष्ट-भ्रष्ट ईमान से,

सुस्ती इनकी पहचान है।

मीठे इनके बोल सुनो,

कार्य इनके अधूरे हैं।

इनके गोल-गोल बातों में घूमो

इन्हें ‘गाँधी’ की खोज है।


अगर आप इस खोज में

सहायता का हाथ बढ़ाओ,

फिर आप इनकी तत्परता देखो,

कार्यकुशलता इनकी देखो,

झटपट आपके सारे काम हुयें,

चिंतामुक्त अब आप  हुयें।


अरे, क्या हुआ!!!

बस.....आपके थोड़े ‘गाँधी’ ही तो गए हैं,

कोई बात नहीं......फिर आ जाएँगे।

आप भी कुछ ‘गाँधी’ दूसरों से ले लीजिए,

यही तो ‘नये भारत’ का ‘न्यू इकोसिस्टम’ है।

-prakash sah (©ps)


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Tuesday, 8 October 2019

बाढ़ में बादल (Baadh Mein Badal) - prakash sah



बाढ़ में बादल

बाढ़ में बादल (Baadh Mein Badal) - Prakash sah - UNPREDICTABLE ANGRY BOY www.prkshsah2011.blogspot.in



बदइंतजामी से बेहाल है बादल

कहीं है जंगल फांका-फांका,

कहीं भूखंड है पड़ा विरान।

असमंजस में बादल, कहीं फूट पड़ा

जन जीवन हुआ इतर-बितर।

असमय व्यवहार इसका,

हदें तोड़ दी जरूरतों की।

उभर पड़ी विस्थापना की समस्या,

बादल ये देख-देख सोच में पड़ा-

मैं अप्राकृतिक हुआ कैसे?

दोष इसमें किसका है?

मेरा या मानवों के भौतिक सुख का?

- prakash sah (©ps)





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