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Friday, 9 August 2024

उज्जर मन | Prakash Sah | भोजपुरी कविता

 



जेंगऽ खेतिया में लहलाहे ला, लागल फसल,

ओहिंगऽ करऽ ता मन उज्जर के हरिअर करे के।



हवा बन के आईल बा केहू बरखा के,

पर नईखे आईल केहू बन के बदरी सावन के।



जे के मन चाहे ला, उ कहाँ मिलेला!

अब मिलेला खाली बरखा बेमौसम के।



जब गरजेला बादल कौनो बेरा पहरिया में,

तऽ समझऽ फाटल बा मन कहीं केहू के।



ई काहे हो ला?

ए से पहिले ठीक करे के होई आपन उज्जर मन के।

-प्रकाश साह
22062024


 

शब्दार्थ :

जेंगऽ : जिस तरह से;   ●ओहिंगऽ : उस तरह से; ●उज्जर : सफेद;  ●हरिअर : हरा रंग, हरियाली; ●बेरा : समय;  ●पहरिया : पहर




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