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Saturday, 12 November 2022

लताओं के हार जाने से | PRAKASH SAH


www.prkshsah2011.blogspot.in

 

बेकरार है कोई हमसे

मोहब्बत करने को इस तरह से।

जैसे कुछ लताएँ

चढती हैं दीवार पे जिस तरह से।


हाँ, हम भी

कभी-कभी दिल हार जाते है उन पे।

जैसे मोहब्बत-ए-इम्तेहाँ में

दीवार को ले लेती हैं लताएँ आगोश में।


रुख़सत-ए-मौसम आने से

सिर्फ एक ही दिल को तकलीफ होता नहीं,

जैसे कईयों का बसेरा उजड़ जाता है दिवार से,

लताओं के हार जाने से। 

लताओं के हार जाने से...

-प्रकाश साह

29092022





 मेरी कुछ अन्य नयी रचनाएँ....


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🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

BG P.C. : PRAKASH SAH

P. Editing : PRAKASH SAH

Tuesday, 18 October 2022

मैं आसमान बन बैठा हूँ | PRAKASH SAH


www.prkshsah2011.blogspot.in

 


कभी-कभी 

साँसों को अटका कर रखता हूँ,

कुछ बातें

छिपाकर रखता हूँ।

दिन जो मेरे कमरे से धीरे-धीरे ढ़ल जाता है,

सवेरा भी हर रोज़

रोज़ की तरह

मेरे खिड़कियों पे चल आता है,

पर अफसोस बातें जो

ज़ेहन में अटकी रहती हैं,

वे बातें कभी

झाँककर भी 

कहाँ बाहर आ पाती हैं!


उन छुपे हुए, अटके हुए 

बातों और एहसासों को 

ढूँढने की ज़हमत

पता नहीं 

अब कौन उठाने आएगा?

ऊंगलियों पर जब ऊंगलियाँ फेरता हूँ

तो देखता हूँ कि

ऐसे लोग मेरे आसपास नहीं है,

और जो हैं

वे मेरे जिद्द के आगे

यूँ हार जाते हैं

जैसे मानो

मैं आसमान बन बैठा हूँ।


किसी रोज़

एक रात 

छत किनारे 

मैं बैठा

स्लेटी रंग के आसमान की तरफ

एकटक 

फटाफट

अपने कालिन-सी पलकों के सहारे

शहर को

आँखों में समेट रहा था

तो देखा मैंने

शहर गम में नहीं था,

पर उत्साहित भी नहीं था।



और बादल

जाे कहीं ज़ल्दबाजी में 

जा रहे थें, 

अचानक बेझुण्ड हो गये,

किसी

अनिश्चित

मिश्रित

भावनाओं के वज़ह से।

सारे शहर के साथ-साथ

मैं उन्हें भी देख रहा था

मेरी परग्रही भावनाओं को

कहीं दूर

साथ लेकर चले जाने के लिए

और अगर हो सके तो 

कहीं किसी दूसरे

आसमान (ब्रह्मांड) में ही सही।


पर तभी 

पानी की एक बूँद गिरी बादलों से,

मेरे गालों को सहलाते हुए

मानो कह रही हो

कि

गम हमारा एक ही है।

साँसें मैंने भी अटका रखी है,

कुछ बातें मैंने भी छिपा रखी है।


हाँ, तभी एहसास हुआ 

कि सच में

मैं आसमान ही बन बैठा हूँ

क्योंकि मेरे गमों को

हमेशा से

बादलों ने ही ताे

छुपाया और सहेज रखा है।


हाँ, मैं आसमान बन बैठा हूँ।

-प्रकाश साह

01072022


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BG P.C. : PRAKASH SAH

P. Editing : PRAKASH SAH

Friday, 7 October 2022

है ना अज़ीब | Prakash Sah

 

www.prkshsah2011.blogspot.in



Dear You,


आज शाम के

पाँच बज रहे थें

और

तुम्हारी बातों से लगा

आज तुम

कुछ बुझी सी हो। 

कई दिनों से

मुझे भी

कुछ कहना था तुमसे।

कुछ बातें याद आती है

तुम्हारे लिए,

हर बार सोचता हूँ

कि

सब बोल दूँ तुम्हें।


अच्छा....!!!

एक खूबसूरत बात 

पता है तुम्हें....

मैं

बोल भी देता हूँ

वो सारी बातें

जो सोच रहा होता हूँ

तुमसे बोलने के लिए।

पर

फिर भी लगता है कि

कुछ अधूरा रह गया है

तुमसे बोलने को।


ऐसा क्यूँ होता है?

ये तुमसे भी पूछ लूँ क्या?

ये भी

उसी वक्त

सोचने लगता हूँ।

कितना अज़ीब है ना!!

एक सवाल के जवाब को

ढूँढ़ने में

एक और सवाल 

मेरे पास आ जाता है।

है ना अज़ीब!!!!

-प्रकाश साह

20092022


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Sunday, 12 June 2022

बस रूक जाला एगो तिनका के सहारा खातिर | भोजपुरी कविता | Prakash Sah

www.prkshsah2011.blogspot.in

 

एगो चाँद के कोना तोड़ले रहनी,

आपन इश्क के आसमान बनावे ख़ातिर।


तोड़ले रहनी हर दिन एगो तारा एमे से,

आपन इश्क के माँगे खातिर।


एकरा के दूगो नैनन से खूब निहरले रहनी 

आपन ख्वाहिश के सच बन जाए खातिर।


जब टूट जाला सारा तारा इश्क के,

आवेला जुगनू रात में तारा बन जाए खातिर।


मन के पंछी चाहेला आसमान के हद छू लीं,

बस रूक जाला एगो तिनका के सहारा खातिर।

-प्रकाश साह

08062022


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Sunday, 15 May 2022

वन मेला - Prakash Sah

 

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वन मेला दिख गया, फूल-पत्तें नाच रहे थें

मैं उनके पास गया, वो सुकून बाँट रहे थें 


रूनझूण-रूनझूण आवाजें, जमीन पे ससर रहे थें

बुजुर्गों जैसे डाँटकर, सूखे पत्तें कुछ समझा रहे थें 


बादल आये थें चुपके से, मैं उलझा था वन देखने में

भर झोली लाये थें पानी, सबको नहलाकर चले गये 


जंगल से ही जीवन है, तुम मुझे क्यूँ सिमटा रहे?

शहर में मुझे शामिल करो, शहर से क्यूँ हटा रहे?

-प्रकाश साह

09052022


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Saturday, 5 February 2022

अपना घर - prakash sah


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तुम्हारे इस शहर में कब तक अपने वजूद के जद्दोजहद में फंसा रहूँगा

एक दशक  बीत जाने  के बाद भी कब तक मैं यहाँ अंजान बना रहूँगा


देखते  ही  देखते  इस  शहर के कई  बागों  में  हजारों नये फूल  खिल  गये

ना जाने मुझे अपने बाग के लिए और कितने बसंत तक इंतज़ार करता रहना पड़ेगा

-प्रकाश साह

05022022


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