**(1)**
सरहदें तोड़ दूँ, सरहदें जोड़ दूँ
हर हद पार कर दूँ
जिससे बंदिशें बनती हैं,
जिससे मोहब्बतें बढ़ती हैं
काबु ना होगा, दिशा ना होगी
पर हिम्मत-ए-खुदा होगा,
जिससे बेपर्दा तो हम होंगे
पर दुनिया मायूसी की जश्न न मनाएगी।
पन्नें पलटते हैं, पलटते रहेंगे,
तारिखें भी वही होंगी पर गिनती बदल जाएगी,
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
   पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...
**(2)**
अमन से जी लूँ, अमन भी ला दूँ
  हर वो माहौल बना दूँ...
जिससे दूरियाँ बनती है,
जिससे नजदीकियाँ बढ़ती है।
हरा पान मुख में रंग भर दे,
ज़रा मान हर कोई को दे दे,
उल्लास-उत्साह संग आज मना ले,
कल कौन जाने!
कल कब हाथ की उंगलियाँ छूट जाएंगी?
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
   पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...
**(3)**
सजा मै दे दूँ, सजा मै ले लूँ,
न्याय की हर दरवाजा खटखटा दूँ...
जिसने भी जुर्म होते देखा है,
जिसने भी जुर्म किया है,
न्यायमूर्ती को खड़ा कर दूँ, संविधान पढ़ा दूँ,
कहीं छूट न जाए 
कोई मासूम की न्याय की तड़पन की आग।
सपनें भी होंगे, ख्वाहिशें भी होंगी
ज़िद भी होगी, तड़पन भी वही होगी
पर इस पीढ़ी की उर्जा मे जोश नई होगी...
इंसानियत को बचाएँगे अपने अहम को हटा कर,
सहम-सहम कर, हिम्मत दिखा कर,
पुरानी वही पहचान होगी
पर वो इंसान की नई गाथा होगी।
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
पर जश्न इस बार नई होगी
   पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...
**(4)**
दुआ दे दूँ, दुआ माँग लूँ
   हाथ जोड़ कर सिर झुका लूँ...
खुद को मैं बड़ा बना लूँ,
खुद को मैं छोटा बना लूँ
जिससे ना कोई मायने बनेंगे,
जिससे ना कोई दायरें बनेंगे।
सबका सम्मान बराबर, सबका हो मान बराबर
तब बढेंगे, तन बढेंगे, मन बढेंगे,
जहाँ को हम जन्म लिए, वहीं से जुड़े सदैव रहेंगे। 
हाँ...शीघ्रता में देर होगी,
हाँ...शीघ्रता में देर होगी,
सर्द की रूग्ण भोर होगी,
स्वर की अमर गूंज वही होगी,
इस नव वर्ष की पहली किरण के संग
नए लोग मिलेंगे पर रश्म नई होगी।
साल भी वही है, सरहदें भी वही है
पर जश्न इस बार नई होगी
पर जश्न इस बार नई होगी...
पर जश्न इस बार नई होगी...
   पर जश्न इस बार नई होगी...
-prakash sah
 
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