हम सब अपने जीवन में जब भी कोई अनजान व्यक्ती से मिलते है तो उसी
वक्त मन में कुछ सवाल घूमने लगता है और उन सवालों के जवाब के कोशिश में हम लगातार
उलझे रहते हैं। फिर बार-बार मन पूछता है :
कौन हो तुम ?
क्या मैं तुमको जानता हूँ ?
बता दो जरा तुम...
पहचान कैसे हुई
तुमसे
मुझको ?
बता दो जरा तुम
ऐसे कैसे हुआ...
बिना जाने एक दूसरे को
मुलाकातें व बातें हो गई,
वादें-इरादें पक्के हो गएं,
साथ जीवन बिताने की भी ख़्वाहिश हो गई ।
अरे ! कौन-सी जादू किए हो तुम
बता दो जरा तुम...
कौन हो तुम?
तुम कैसे मिले थे,
याद नही !
क्षण भर में ही घूल मिल गए,
खूब हँसी-ठिठोली हो गई ।
यार...कौन हो तुम ?
राज खोलो...
किस दरबार से आए हो तुम ?
बता दो जरा तुम...
छलिए हो या राहगीर,
जो बस...
दो पल के मिलन की खातिर ही
आए हो तुम ।
बता दो जरा तुम...
यही हो ना तुम ?
यही हो ना तुम ? यही हो ना तुम ?
...
...
...
कौन हो तुम ?
क्या मैं तुमको जानता हूँ ?
बता दो जरा तुम...
©ps
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