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Saturday, 30 December 2017

कौन हो तुम (Stranger : Kaun ho Tum) - ps

हम सब अपने जीवन में जब भी कोई अनजान व्यक्ती से मिलते है तो उसी वक्त मन में कुछ सवाल घूमने लगता है और उन सवालों के जवाब के कोशिश में हम लगातार उलझे रहते हैं। फिर बार-बार मन पूछता है :


कौन हो तुम (Stranger) - ps www.prkshsah2011.blogspot.in


कौन हो तुम ?

क्या मैं तुमको जानता हूँ ?

बता दो जरा तुम...

पहचान कैसे हुई

तुमसे

मुझको ?

बता दो जरा तुम

ऐसे कैसे हुआ...

बिना जाने एक दूसरे को

मुलाकातें व बातें हो गई,

वादें-इरादें पक्के हो गएं,

साथ जीवन बिताने की भी ख़्वाहिश हो गई ।

अरे ! कौन-सी जादू किए हो तुम

बता दो जरा तुम...

कौन हो तुम?



तुम कैसे मिले थे,

याद नही !

क्षण भर में ही घूल मिल गए,

खूब हँसी-ठिठोली हो गई ।

यार...कौन हो तुम ?

राज खोलो...

किस दरबार से आए हो तुम ?

बता दो जरा तुम...

छलिए हो या राहगीर,

जो बस...

दो पल के मिलन की खातिर ही

आए हो तुम ।

बता दो जरा तुम...

यही हो ना तुम ?
यही हो ना तुम ? यही हो ना तुम ?
...
...
...

कौन हो तुम ?

क्या मैं तुमको जानता हूँ ?

बता दो जरा तुम...
©ps


follw the blog UNPREDICTABLE ANGRY BOY www.prkshsah2011.blogspot.in

Thursday, 7 December 2017

सखी : सागर की मोती (Sakhi : Sagar ki Moti) -ps

[ ‘सखी might be -
 two friends, or
two real sisters, or
a mother & a daughter, the situation after daughter got married ]

What happens when distance has been come between two sisters like friend and a day one friend is got emotional about their past memories that they both lived together….and  she is looking for a ray of hope. Once they met accidentally…..and then one friend is in complaining mood   : 

सखी : सागर की मोती
छूए मन को तेरी बात सखी,
हाथो को झूला कर
हर वो बात की जो हो सकी।
बुलाऊँ उस क्षण को
जिसमें तेरी खिल-खिलाहट खिल उठी,
मुझे भूलकर तू मेरे बिन कैसे जी उठी !

हमारी यादें, हमारे इरादें
मिली थी सागर के किनारें,
लगाते थे गोता हम साथ के सहारें,
चमकते सागर के मोतियों से
कब बन गए हम
धीरे-धीरे बिछड़न के दीवारें ?

कोई तो बुला दे, कोई तो सुला दे
उस बहती हवा में,
जिसे हमने कभी, उस सफर में चलाया था,
जब हम साथ चला करते थें।

किसी दिन वो हवा भी देखेगी जरूर,
किसी टेढ़ी-मेढ़ी रास्तों से निकलकर,
उसके ही तरह,
फिर से हमारी मंजिलें भी मिला करेगी ।
©ps


Sunday, 26 November 2017

मृगुवक (Mriguvak) -ps


मृग और युवक के संधी से  शब्द 'मृगुवक' बना है (मृग + युवक = मृगुवक) ।

हम सब ने एक सुप्रसिद्ध कहानी पढ़ा या सुना होगा जिसमें एक मृग (हिरण)  जंगल में एक अज्ञात सुगंध के पिछे पागल रहता है और इसकी खोज में पुरे वन को खंगाल देता है पर वह इसे ढूँढ़ने में सफल नही हो पाता। क्योकि वह सुगंध उसके ही नाभी में होती है और वह इससे पुरी तरह अनभिज्ञ है। 

इसी प्रकार एक युवा अपनी काबलियत के बारे में जानने की कोशीश नही करते हैं और ज्यादातर युवा भेड़ चाल में विश्वास करने लगते हैं। दूसरा क्या कर रहा ? .....इसी को ध्यान में रखकर वह ज्यादातर समय में वे अपनी सोच को तय करते हैं। 
एक युवा के अंदर में हमेशा कुछ नया करने की आग होती है.....उनमें भरपूर  जोश और उत्साह साथ होता है । 
युवा हर समस्या का हल है...चाहे वह समस्या कितना ही कठिन क्यों ना हो । युवा सृजनकर्ता है। यही विद्युत हैं, यही प्रवाह हैं।

हमे अपना आदर्श स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, भगत सिंह और ऐसे अन्य को मानकर....उनका अनुसरण करना चाहिए । हमे हिरण से सबक लेकर....खुद को जानने का खुब मौका देना चाहिए....ना कि भेड़ चाल चले।
युवा को अपना क्रोध, उत्तेजना, जोश और उत्साह को सार्थक नियंत्रण करके आगे बढ़ना चाहिए.... और अपने जड़त्व को ना भूलें।

।। मृगुवक ।।


गरज तू बरस तू

धड़क तू रक्त तू

सन्न है मन में

विद्युत तू प्रवाह तू
-

सनक तू भड़क तू

देर तू अधिर तू

शांती है गांधी में

ज्ञान तू किताब तू
-

जड़ तू धड़ तू

प्रखर तू नव तू

लय है स्वामी में

जान तू खोज तू
-

दहाड़ तू लपक तू

उठा तू बंदुक तू

बलिदान है सिंह में

त्रिमूर्त तू प्रत्यक्ष तू
-

दौड़ तू संभल तू

सुगंध तू सृजन तू

रहस्य है वन में

हिरण तू कस्तुर तू
©ps

*आप अपनी प्रतिक्रिया मेरे साथ जरूर साझा करें।

शब्दार्थ
त्रिमूर्त : शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव


Wednesday, 15 November 2017

चुनावी मौसम (Election Time) -ps

चुनावी मौसम



चुनाव का मौसम,
मतदान एक रश्म ।
18 से ऊपर के मतदाता,
आते चुनने अपना राष्ट्रनिर्माता ।
कर्तव्य निर्वहन
करते सब अपना अपना,
सबको प्यारा देश अपना ।
सपना किसका पूरा करते नेता,
यूँ ही चलता
पता नहीं किसको कितना हक मिलता ।
जो जीता वही सिकंदर,
वही सांसद होते संसद के अंदर ।
चुनते वे एक नेता होतें वह प्रधानमंत्री,
इनके ही इर्द-गिर्द होतें भिन्न-भिन्न मंत्री-संत्री ।

पाँच साल का काल
साल-दर-साल
नेता हुएं मालामाल ।
ऐसे ही चला
क्रम-दर-क्रम हर सरकार
जनता हुई बेहाल ।
कौन है इसका जिम्मेदार
हम या सरकार ?

जागरूक कौन होगा ?
एक कार्य पूर्ण कर

Friday, 10 November 2017

देर रात अंधियारे में (Der Raat Andhiyare mein : Late Night) -ps

।। देर रात अंधियारे में ।।

Nightingale

तु क्यूँ चहकती रात के अंधियारे में,

क्यूँ तेरे पेट का मिलाप नही हुआ स्वादिष्ट आहारों से !

तुझे नही दीखता अब मैं सो गया, गहरी निंदों में,

तु पहले क्यूँ नही आयी, जा अब मै ना निकलूँ, इस गर्म रजाई से ।

मेरी एक लालसा तु समय पर आया कर, जिससे डूब जाऊँ तेरी स्वरगूँजन में ।

तु बार-बार क्यूँ भूल जाती, मै आलसी हूँ लड़कपन से ।

तेरी ये चहचहाहट सुनने के लिए ही जगता, देर तक इस अंधियारे में,

Saturday, 23 September 2017

बदलाव (TRANSITION : Badlaaw) -ps

“सच्च कहा है किसी ने की वक्त के साथ हर कोई बदल जाता है, 
गलती उसकी नही जो बदलता है, 
गलती उसकी होती है जो पहले जैसा रह जाता है”

मेरा मानना है...यह कथन कुछ या कहूँ कि बहुत हद तक सही नही है,
मेरा विचार कुछ भिन्न है : 

।। बदलाव ।।


माना किसी ने सच्च कहा है कि

बदलाव जिंदगी की एक रीत हो,

पर वो बदलाव ही किस काम की,

जिसमें साथी के साथ रहने का ही ना गीत हो ।



उस तूफान का ही क्या काम,

जिसमे हवा अपनी राह ना बदले ।

पर उस हवा को सलाम

जो धूल को भी अपनी बदलाव की

Friday, 15 September 2017

जिंदगी एक सफर है सुहाना (Zindagi ek safar hai suhana; Journey) -ps

जिंदगी एक सफर है सुहाना

जिंदगी एक सफर है सुहाना (Journey) -ps prkshsah2011.bogspot.in

जिंदगी एक सफर है सुहाना,

मिलजुल कर है अपनाना।

चलो सब साथ या अकेला,

बोझ अपना या दूसरे का, खुद पे इतना मत देना

कि खुद का ही वजूद भूल जाओ।

देखो अगल बगल कोई दोस्त है या दुश्मन,

ट्रेन के डिब्बें अच्छे हैं या टूटे-फूटे अस्त-व्यस्त,

चलो इसमें कोई फर्क ना करें,

हमसब एक ही परमात्मा के हैं जो बंदें ।

अलग अलग पट्रियों से हो कर

Monday, 11 September 2017

मेरा देश कहता है कुछ (Mera desh Kehta Hai Kuchh; country) -ps

।। मेरा देश कहता है कुछ ।।


मेरा देश कहता है कुछ
कदम-कदम पे विविधता जिता है मेरा देश।
घूम न सका पूरा देश तो क्या हुआ,
किसी और के यादों से घूमता हूँ सारा देश।

जब खुला आकाश रहता हूँ,
किस रंग में हूँ मैं,
ये भी ना पहचान सकूँ मैं।
जब-जब मैं भंग हुआ,
तेरा रंग हरा, मेरा रंग केसरिया
हर पल ढूँढ़ता रहता हूँ मैं।

“हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई

Sunday, 10 September 2017

हमारा अभिषेक (Hamara Abhishek) -ps

।। हमारा अभिषेक ।।

आज दिल से निकले है सौगात मेरे यार के लिए,
दिल चाहता है जान लूटा दूँ इस दिलदार के लिए ।
कारण ना ढूँढ़ता हम सब से मिलने के लिए,
मन से जुड़े रहता हम सब के प्यार के लिए ।

एक समय हम उसे चिढ़ाते कान लाल के लिए,
गुस्सा ऐसे होता जैसे खून पीने के लिए ।
पोटता किसी को ऐसे जैसे पटाने के लिए,
छोड़ता जल्दी उसको, दूसरी जाल में फँसाने के लिए ।


Wednesday, 30 August 2017

कम-से-कम मार्गदर्शक तो बना (Kam-se-Kam Maargdarshak to Bana) -ps

।। कम-से-कम मार्गदर्शक तो बना ।।

कम-से-कम मार्गदर्शक तो बना (maargdarshak) -ps prkshsah2011.blogspot.in

रात बित जाए कि दिन बित जाए,
फर्क ना पड़े कौन क्या कहे कि हम क्या रह गएं।
तु  भी तो कभी वही था, जो हम आज हैं,
‘राज’ राज रह गया जब हम दोनो चाह गएं।

किस ओर मैं बढ़ गया राह का न पता चला,
तुझे उस ओर देखा तो राह बदल डाला।
इतना तो पता चला जिस राह पे तु लगातार बढ़ा,
उस राह से मुझे मेरी मंजिल कभी सही ना मिला।

तु गलत था या सही था,
इसमें अब मैं समय बर्बाद नही करता।
तु मेरे जीवन का आदर्श नहीं तो
कम-से-कम मार्गदर्शक तो बना। 
©ps

Friday, 18 August 2017

दो चेहरें (TWO FACES) -ps

।। दो चेहरें ।।

जिंदगी की एक पहेली है
चेहरा ही जीवन की एक सहेली है ।
क्यूँ घूमते फिरते सब दो चेहरें में ?
अब बस यही एक नई मुश्किल पहेली है।

वास्तव मे होतें एक ही इंसान हैं,
बात करतें वही हैं,
पर दिखतें ‘दो राही’ हैं,
शायद इसी को कहते ‘दो चेहरें’ हैं।

चेहरे के बिना आईना का क्या हो !
आईना के बिना खूबसूरत चेहरों का क्या हो !
इन्ही चेहरों पर सभी का ‘चेहरा पे चेहरा’ है,
एक चेहरा पर किसी का ना दिल ठहरा है।

दो चेहरों की होती है उपयोगीता –
एक दिखाती है अगर उदासीनता,
तो दूसरी दिखाती है प्रसन्नता।

एक को सजाते-सँवारते है कोई अपनो के खातिर,
तो दूसरी को सजाते-बिगाड़ते है
अपने तरिके से जीने के खातिर ।

माना...अगर एक पे होता है क्रोध,
तो दूसरी पे आती है मोह ।
कुछ-कुछ समझ कर आता है होश,
फिर हम, एक दूसरे पे दिखाते है रोष ।
यही है मेरे दोस्त, दो चेहरों का दोष ।

समझ तो पूरी है...
पहेली का हल अब भी कुछ अधुरी है ।
क्यों सबको एक चेहरा में रहने से दूरी है ?
अब एक ही समझदारी है,
दूसरो को दे दूँ इस पहली को
इसमें ही शायद मेरी बहादुरी है
इसमें ही शायद मेरी बहादुरी है...
©ps