चुनावी मौसम
चुनाव का मौसम,
मतदान एक रश्म ।
18 से ऊपर के
मतदाता,
आते चुनने अपना
राष्ट्रनिर्माता ।
कर्तव्य निर्वहन
करते सब अपना
अपना,
सबको प्यारा देश
अपना ।
सपना किसका पूरा
करते नेता,
यूँ ही चलता
पता नहीं किसको
कितना हक मिलता ।
जो जीता वही
सिकंदर,
वही सांसद होते
संसद के अंदर ।
चुनते वे एक नेता
होतें वह प्रधानमंत्री,
इनके ही इर्द-गिर्द होतें भिन्न-भिन्न मंत्री-संत्री
।
पाँच साल का काल
साल-दर-साल
नेता हुएं
मालामाल ।
ऐसे ही चला
क्रम-दर-क्रम हर
सरकार
जनता हुई बेहाल ।
कौन है इसका
जिम्मेदार
हम या सरकार ?
जागरूक कौन होगा
?
हम कभी ना ठहरे होंगे ।
नख काली स्याही चढ़ा कर
क्या हम उसके
उतरने का
इंतजार करेंगे ?
हमे अपना
कर्तव्य
हर रोज दिखाना
होगा ।
समर्थन या विरोध
का स्वर
बुलंद कर
जनतंत्र पर्व को
प्रदर्शीत करना होगा
हर रोज जन-जन को
जागरूक होना होगा
हर रोज जन-जन को जागरूक होना होगा...
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