Email Subscription

Enter your E-mail to get
👇👇👇Notication of New Post👇👇👇

Delivered by FeedBurner

Followers

Thursday, 6 May 2021

नामुम़किन में छुपा मुम़किन - PRAKASH SAH

मैंने इस रचना को 2 नवम्बर 2019 को लिखा था लेकिन आज मैं इसे आपलोग के साथ साझा कर रहा हूँ। इसका भी एक हास्यास्पद कारण है और वह यह है कि इसका मुझे कोई सटीक शीर्षक नहीं मिल रहा था। यही एकमात्र कारण है कि मैं इसे अपने ब्लॉग पर छाप नहीं पा रहा था।

पर अंततः यह मेरी खोज़ कुछ दिन पहले ही पूरी हुयी। और फिर आज आपसब के सामने एक सटीक शीर्षक के साथ यह नीचे प्रस्तुत है।


UNPREDICTABLE ANGRY BOY

 

हर कोई बीत जाए

ये मुम़किन नहीं

उनका देह नहीं तो

नाम ज़िंदा रहेगा

 

हर कोई बदल जाए

ये मुम़किन नहीं

उनका साथ नहीं तो

आशीष सदा रहेगा

 

हर कोई रूठ जाए

ये मुम़किन नहीं

व्यवहारों से नहीं तो

यादों से मना लीजियेगा      

 

हर कोई नास्तिक हो जाए

ये मुम़किन नहीं

भजन से आस्तिक नहीं तो

सेवाभाव से बन जाइएगा

                    -प्रकाश साह

                      021119


 मेरी कुछ अन्य रचनाएँ....



आपकाे यह रचना कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें। और अगर मेरे लिए आपके पास कुछ सुझाव है तो आप उसे मेरे साथ जरूर साझा करें।     

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏