मैं साथ नहीं तो क्या हुआ?
मेरा विवाह तुमसे नहीं हुआ तो क्या हुआ?
मैं तुम्हारे प्रेम में हूँ, काफी है।
तुम्हारा प्रेम नहीं मिला तो क्या हुआ!
संगीत मैंने खूब सुना,
दुःख मैंने खूब रोया।
उपहारों में मैंने तुम्हें पाया,
तुम्हें अपने घर का हिस्सा बना नहीं पाया तो क्या हुआ!
तुम्हारे संग सुकून का मौसम मिला,
मेरी सारी बातों को नया आयाम मिला।
तुम्हारा नहीं तो मेरा ही सही,
नहीं मिला तुम्हारा इज़हार तो क्या हुआ!
अपने नाम के साथ तुम्हें बांध नहीं पाया,
हाँ मालूम है तुम्हें बंधना पसंद नहीं।
तुम्हारी ज़ुल्फ़ें तुम्हारी ही तरह आज़ाद है,
बस उन ज़ुल्फ़ों में खुद को उलझा नहीं पाया तो क्या हुआ!
पकड़ नहीं पाया तुम्हारी उँगली,
छू नहीं पाया तुम्हारी पलकें,
लगा नहीं पाया तुम्हारे माथे पे कोई बिन्दी,
ना जाने क्या-क्या रह गया बाक़ी।
हक से मैंने तुम्हें सब कुछ कहा,
बस कह नहीं पाया तो सिर्फ तुम्हें संगिनी।
-प्रकाश साह21062024