माँ का क्या होगा? किसने जाना? मैं हर बार सहमा इन सवालों से। अब मैंने उससे बोला कि रह तू जीवन भर, मेरे संग, ओ! मेरी माँ। अब ढ़ेर सारी बेमतलब बातों में, मैं एक मतलब की बात जाना हूँ..."माँ है क्या"
(माँ की दुनिया बहुत साधारण होती है.....इसी तरह यह रचना भी माँ की तरह बिल्कुल साधारण है, बिना कोई भारी भरकम शब्दों के साथ)
माँ है क्या
मैंने जाना
मैंने बोला
कि रह तू जीवन भर
मेरे संग
ओ! मेरी माँ, मेरी माँ, मेरी माँ...
रोया मैं
माँ दुलारी
माँ बोली
कि रहूँगी जीवन भर
तेरे संग
मैं! तेरी माँ, तेरी माँ, तेरी माँ...
आँचल के
छाँव में
रहना है
सोना है
निंदिया मेरी, लोरी तेरी
ओ! मेरी माँ, मेरी माँ, मेरी माँ...
मैं भूखा और
माँ का
एक निवाला
माँ बोली
मैंने तुझे रोज निहारा
मैं! तेरी माँ, तेरी माँ, तेरी माँ...
मैं तेरा रूप
कहते लोग
देखा मैं
तेरी ओर
मुझमें तू
ओ! मेरी माँ, मेरी माँ, मेरी माँ...
माँ आसमान
वो बोली
तू है मेरा
चाँद-तारा
तू मुझमें देख
मैं! तेरी माँ, तेरी माँ, तेरी माँ...
-प्रकाश साह
281018
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