मनुष्य या कोई भी अन्य जीव इस संसार के जीवनचक्र में जब प्रवेश करता है तो स्वतः उसमें भय का भाव रहता है....शिशु अवस्था में उसे अपनी माता से बिछड़ने का भय रहता है; जब जीवन के प्रत्येक आवश्यक पड़ाव पर असफलता प्राप्त होता है तब हमारे अंदर भय का आगमन होता है.....यह धीरे-धीरे हमारे जीवन के साथ बढ़ने लगता है और भय का विभिन्न कारण भी। अगर भय को नियंत्रित करने की कला सीख ले तो लक्ष्य प्राप्ति में हम सहजता महसूस करते हैं। इस कला को बालावस्था में नहीं सीखा जा सकता....इसे हम जीवन के अनुभवों से सीखते हैं।
।। भय ।।
व्यय मत कर भय, काल फिर भर जाएगा
संशय मन का साया है, मृत देह संग जाएगा
असत्य का पूरक भय, जिह्वा का लड़खड़ाना लय
संकेत सूचक इशारा है, मन का घबराना तय
काला रंग को माने भय, अंतर्मन का परिचय अंधकारमय
स्मरण श्याम रंग कृष्ण का, प्रायः धर्मयुद्ध का सारथी हम में
Nice poem sir
ReplyDeleteThankyou
Deleteबहुत सही सार्थक रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद महाशय।
Deleteमेरी रचना को इस योग्य समझने के लिए धन्यवाद। सम्मानित महसूस कर रहा हूँ।
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteशुक्रिया..!
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर आभार सर..
Deleteबहुत ही सुंदर रचना।
ReplyDeleteLove you Bhai...
Deleteसुंदर!
ReplyDeleteधन्यवाद महाशय!
Deleteसुंदर और भावपूर्ण सृजन
ReplyDeleteआभार..
Deleteसार्थक सुंदर रचना ।
ReplyDeleteधन्यवाद कुसुम जी ।
Deleteसंकेत सूचक इशारा है, मन का घबराना तय
ReplyDelete..सटीक...बहुत सुन्दर अनुवाद
यह पंक्ति मेरा भी पसंदीदा पंक्ति है। आभार आपका।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदय तल से आपको बहुत-बहुत धन्यवाद,यशोदा जी। यह प्रथम अवसर है जो आप मेरी किसी रचना से प्रभावित हुई हैं।
Deleteमैं आपके ब्लॉग पे अवश्य उपस्थित होऊँगा। प्रणाम।
सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद सर।
Deleteभय की सुंदर व्याख्या........ सादर नमन
ReplyDeleteसादर प्रणाम! कामिनी दीदी।
Deleteबस अपने अंतर्मन के भय को भूलाने की कोशिश किए। इसी का परिणाम था यह।