बाढ़ में बादल
बदइंतजामी से बेहाल है बादल
कहीं है जंगल फांका-फांका,
कहीं भूखंड है पड़ा विरान।
असमंजस में बादल, कहीं फूट पड़ा
जन जीवन हुआ इतर-बितर।
असमय व्यवहार इसका,
हदें तोड़ दी जरूरतों की।
उभर पड़ी विस्थापना की समस्या,
बादल ये देख-देख सोच में पड़ा-
मैं अप्राकृतिक हुआ कैसे?
दोष इसमें किसका है?
मेरा या मानवों के भौतिक सुख का?
- prakash sah (©ps)
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 09 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयशोदा जी, आपका बहुत-बहुत आभार। धन्यवाद।
DeleteYou write very well and you keep writing brother.😊
ReplyDeleteThankyou!
Deleteबहुत गहरा चिंतन ।
ReplyDeleteसटीक सार्थक।
आभार!
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
धन्यवाद श्वेता दी।
Deleteइस बार मैं आपको प्रभावित करने सफल रहा।
बहुत सुंदर और सार्थक रचना
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteदोष इसमें किसका है?
ReplyDeleteमेरा या मानवों के भौतिक सुख का?
चिंतन करने योग्य सवाल ,हर एक को खुद से ही पूछना होगा ,गहरी चिंतन करती रचना ,सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteमानव ने प्रकृति का बहुत नुकसान किया है मात्र निजी स्वार्थ के लिए।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉 ख़ुदा से आगे
धन्यवाद रोहित जी!
DeleteYour words truly related to the aspects of selfness of human and their greedy nature that destoy our nature.
ReplyDeleteWe have to take hard steps to reach nearby the normal situation.
DeleteThankyou for coming here, Mr. Abhishek.