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Thursday, 7 December 2017

सखी : सागर की मोती (Sakhi : Sagar ki Moti) -ps

[ ‘सखी might be -
 two friends, or
two real sisters, or
a mother & a daughter, the situation after daughter got married ]

What happens when distance has been come between two sisters like friend and a day one friend is got emotional about their past memories that they both lived together….and  she is looking for a ray of hope. Once they met accidentally…..and then one friend is in complaining mood   : 

सखी : सागर की मोती
छूए मन को तेरी बात सखी,
हाथो को झूला कर
हर वो बात की जो हो सकी।
बुलाऊँ उस क्षण को
जिसमें तेरी खिल-खिलाहट खिल उठी,
मुझे भूलकर तू मेरे बिन कैसे जी उठी !

हमारी यादें, हमारे इरादें
मिली थी सागर के किनारें,
लगाते थे गोता हम साथ के सहारें,
चमकते सागर के मोतियों से
कब बन गए हम
धीरे-धीरे बिछड़न के दीवारें ?

कोई तो बुला दे, कोई तो सुला दे
उस बहती हवा में,
जिसे हमने कभी, उस सफर में चलाया था,
जब हम साथ चला करते थें।

किसी दिन वो हवा भी देखेगी जरूर,
किसी टेढ़ी-मेढ़ी रास्तों से निकलकर,
उसके ही तरह,
फिर से हमारी मंजिलें भी मिला करेगी ।
©ps