मनुष्य या कोई भी अन्य जीव इस संसार के जीवनचक्र में जब प्रवेश करता है तो स्वतः उसमें भय का भाव रहता है....शिशु अवस्था में उसे अपनी माता से बिछड़ने का भय रहता है; जब जीवन के प्रत्येक आवश्यक पड़ाव पर असफलता प्राप्त होता है तब हमारे अंदर भय का आगमन होता है.....यह धीरे-धीरे हमारे जीवन के साथ बढ़ने लगता है और भय का विभिन्न कारण भी। अगर भय को नियंत्रित करने की कला सीख ले तो लक्ष्य प्राप्ति में हम सहजता महसूस करते हैं। इस कला को बालावस्था में नहीं सीखा जा सकता....इसे हम जीवन के अनुभवों से सीखते हैं।
।। भय ।।
व्यय मत कर भय, काल फिर भर जाएगा
संशय मन का साया है, मृत देह संग जाएगा
असत्य का पूरक भय, जिह्वा का लड़खड़ाना लय
संकेत सूचक इशारा है, मन का घबराना तय
काला रंग को माने भय, अंतर्मन का परिचय अंधकारमय
स्मरण श्याम रंग कृष्ण का, प्रायः धर्मयुद्ध का सारथी हम में