वज़ह का दोष
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चलो
कभी वज़ह को वज़ह
मान लिया जाए
कुछ रिश्ते टूटने
की,
बिन दोष दिए उन
रिश्तों में पड़े दो व्यक्तियों को।
मैंने
अक्सर देखा है
लोगों को
बेवज़ह की बातों
में फँसकर
रिश्तों को
फँसाते,
वही लोग जो कुछ
पल पहले ही
साथ में खूब
ठहाके मारे जा रहे थें।
दोष
बस उस वज़ह का होता है
जिसमें हम फँसकर
सालों तक अपनों
से दूर हो जाते हैं।
कभी-कभी
उस वज़ह को भी
ढूँढ़ना चाहिए
जिस वज़ह से उस
वज़ह को हम सच मान लेते हैं।
क्योंकि
अचानक यूँ ही कोई
वज़ह, वज़ह नहीं बनता,
एक 'सुलझी बेमतलब की वज़ह' का रूप
वक्त-दर-वक्त कुछ 'अनसूलझी वज़हों की तहें' ले लेती है।
ऐ वजह! तुम्हारे
वज़ह से ही
मैंने अपना इश्क
का समंदर खोया है
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ऐ वज़ह!!!
इधर आओ पास।
हाँ, मेरे पास!
देखो...
मेरे पैरों के नीचे
ये बिखरे पड़े
रेत, मेरा दिल ही है।
क्या तुम इसे
पहचान रही हो???
अच्छा!!
याद करो...वो दिन
जब कलकल करती नदी
की धारा में
मैं अपनी
प्रियतमा संग डूबकियाँ ले रहा था
तब तुमने ही
एक झूठ का भँवर
बनाया था
कि मेरी प्रियतमा
मुझसे प्रेम नहीं करती।
और मैं तब
हताहत होकर
अचानक
तुम्हारे बनाए गये
इस वज़ह के
सवालों के
भँवर में
इतना घूमा
कि मेरा दिल
टूटकर वहीं रेत बन गया।
ऐ वज़ह!
हाँ मैं तेरी
वज़ह से ही,
मैं समन्दर तक
बिखर गया।
लेकिन
तुमने एक बार भी
कोई भी
यूँ ही
उस झूठ पर
एक बनावटी सच का
मलहम लगाने को भी नहीं सोचा और
ना ही कभी कोशिश
की
कि तुम मेरे
उस रेत-से हुए
दिल को समेटकर
कम-से-कम
पत्थर का ही दिल
बना दो
जिससे कि
जब भी मेरी
प्रियतमा
इस नदी किनारे
आये
तो कम-से-कम
मैं उसके कोमल
एहसासों
को तो अपना बोल
पाऊं।
पर तुमने ऐसा भी कुछ किया नहीं।
ऐ वज़ह!
क्या तुम्हें पता
है कि
आज मैं तुम्हारे
पास क्यूँ आया हूँ?
अगर नहीं, तो जान जाओ
क्योंकि आज मैंने
देखा
तुम्हारे दुआरे
कि यही मेरा
रेत-सा दिल, लहरों के साथ मिलकर
तुम्हारे घर के
चौखट को ठोकर मारे जा रहा था।
उस वज़ह की सिर्फ
एक 'बेचैनी' थी...
तुम्हें कुछ याद
दिलाने के लिए...
जो शायद तुम भूल
गयी हो
कि मैंने ही अपना
इश्क का समन्दर खोया है,
तुम्हारे वज़ह से,
ऐ वज़ह!!!
ऐ वज़ह!!!
इधर आओ पास।
हाँ, मेरे पास!
देखो...
मेरे पैरों के नीचे
ये बिखरे पड़े
रेत, मेरा दिल ही है।
150521
मेरी कुछ अन्य रचनाएँ....
बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी आपका बहुत धन्यवाद
Deleteजी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद-आभार 🙏🙏
ReplyDeleteवजह बेवजह की कई बार बहुत बढ़ी वजह बन जाती है ... क्या बात है ...
ReplyDeleteसही है ऐसी बेवजह की वजहों को बाहर कर देना ही अच्छा होता है ...
जी आपने सही कहा। बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबिल्कुल सटीक अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteजी बहुत धन्यवाद आपका
Deleteबहुत ही उम्दा और सटीक रचना!
ReplyDeleteजी आपका बहुत धन्यवाद
Deleteवाह एकदम सटीक कही आपने...शानदार सृजन।
ReplyDeleteजी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
Deleteप्रकाश भाई, कई बार बेवजह भी इंसान कितना दुखी हो जाता है इसका बहुत सुंदर विश्लेषण किया है आपने।
ReplyDeleteज्योति दी, आपका सहृदय बहुत धन्यवाद-आभार
Delete"वजह-वेवजह" की बेहतरीन और सटीक अभिव्यक्ति प्रकाश जी,
ReplyDeleteजी बहुत-बहुत धन्यवाद दी!!!
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी आपका शुक्रिया
Delete🤗
ReplyDeleteधन्यवाद भाई!!
Deleteअक्सर देखा है लोगों को
ReplyDeleteबेवज़ह की बातों में फँसकर
रिश्तों को फँसाते......... बहुत सटीक लिखा आपने।
धन्यवाद मित्र !!!
DeleteGood
ReplyDeleteधन्यवाद मित्र!!!
Deleteवाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!!!!
Deleteवाह! अभिव्यक्ति का सघन सम्पुट संवेदना की नमी लिए। बहुत सुंदर शब्द चित्र।
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteजी धन्यवाद!!
Deleteवाह औरसिर्फ वाह प्रिय प्रकाश।जिन्दगी के आबाद और बर्बाद होने की वजह ही होती है।बहुत मर्मांतक संवाद है इस खलनायिका वजह से ☹
ReplyDeleteआपके शब्दों के माध्यम से वहाँ प्रशंसा में की गयी हृदयस्पर्शी आवाज मैं यहाँ बिल्कुल अनुभव कर सकता हूँ। मैं बहुत प्रोत्साहित हुआ। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, दी!!
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteWaah bhai Kamaal h sabdo me aapke
ReplyDeleteजी शुक्रिया भाई!
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