Email Subscription

Enter your E-mail to get
👇👇👇Notication of New Post👇👇👇

Delivered by FeedBurner

Followers

Tuesday, 1 June 2021

वज़ह का दोष | (कविता/संवाद) | ऐ वज़ह! तुम्हारे वज़ह से ही मैंने अपना इश्क का समंदर खोया है | PRAKASH SAH



वज़ह का दोष
■■■■□■■■■

 

चलो

कभी वज़ह को वज़ह मान लिया जाए

कुछ रिश्ते टूटने की,

बिन दोष दिए उन रिश्तों में पड़े दो व्यक्तियों को।

मैंने

अक्सर देखा है लोगों को

बेवज़ह की बातों में फँसकर

रिश्तों को फँसाते,

वही लोग जो कुछ पल पहले ही

साथ में खूब ठहाके मारे जा रहे थें।

दोष

बस उस वज़ह का होता है

जिसमें हम फँसकर

सालों तक अपनों से दूर हो जाते हैं।

कभी-कभी

उस वज़ह को भी ढूँढ़ना चाहिए

जिस वज़ह से उस वज़ह को हम सच मान लेते हैं।

क्योंकि

अचानक यूँ ही कोई वज़ह, वज़ह नहीं बनता,

एक 'सुलझी बेमतलब की वज़ह' का रूप

वक्त-दर-वक्त कुछ 'अनसूलझी वज़हों की तहें' ले लेती है।

                     ***



www.prkshsah2011.blogspot.in

 

ऐ वजह! तुम्हारे वज़ह से ही

मैंने अपना इश्क का समंदर खोया है

□■□■□□■□■□

 

ऐ वज़ह!!!

इधर आओ पास।

हाँ, मेरे पास!

देखो...

मेरे पैरों के नीचे

ये बिखरे पड़े रेत, मेरा दिल ही है।

क्या तुम इसे पहचान रही हो???

अच्छा!!

याद करो...वो दिन

जब कलकल करती नदी की धारा में

मैं अपनी प्रियतमा संग डूबकियाँ ले रहा था

तब तुमने ही

एक झूठ का भँवर बनाया था

कि मेरी प्रियतमा मुझसे प्रेम नहीं करती।

और मैं तब

हताहत होकर

अचानक

तुम्हारे बनाए गये

इस वज़ह के सवालों के

भँवर में

इतना घूमा

कि मेरा दिल टूटकर वहीं रेत बन गया।

 

ऐ वज़ह!

हाँ मैं तेरी वज़ह से ही,

मैं समन्दर तक बिखर गया।

लेकिन

तुमने एक बार भी

कोई भी

यूँ ही

उस झूठ पर

एक बनावटी सच का

मलहम लगाने को भी नहीं सोचा और

ना ही कभी कोशिश की

कि तुम मेरे

उस रेत-से हुए दिल को समेटकर

कम-से-कम

पत्थर का ही दिल बना दो

जिससे कि

जब भी मेरी प्रियतमा

इस नदी किनारे आये

तो कम-से-कम

मैं उसके कोमल एहसासों

को तो अपना बोल पाऊं।

पर तुमने ऐसा भी कुछ किया नहीं।

 

ऐ वज़ह!

क्या तुम्हें पता है कि

आज मैं तुम्हारे पास क्यूँ आया हूँ?

अगर नहीं, तो जान जाओ

क्योंकि आज मैंने देखा

तुम्हारे दुआरे

कि यही मेरा रेत-सा दिल, लहरों के साथ मिलकर

तुम्हारे घर के चौखट को ठोकर मारे जा रहा था।

उस वज़ह की सिर्फ एक 'बेचैनी' थी...

तुम्हें कुछ याद दिलाने के लिए...

जो शायद तुम भूल गयी हो

कि मैंने ही अपना इश्क का समन्दर खोया है,

तुम्हारे वज़ह से,

ऐ वज़ह!!!

 

ऐ वज़ह!!!

इधर आओ पास।

हाँ, मेरे पास!

देखो...

मेरे पैरों के नीचे

ये बिखरे पड़े रेत, मेरा दिल ही है।

 -प्रकाश साह

150521


 मेरी कुछ अन्य रचनाएँ....


आपकाे यह रचना कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें। और अगर मेरे लिए आपके पास कुछ सुझाव है तो आप उसे मेरे साथ जरूर साझा करें।     

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

BG P.C. : YourQuote.in

P. Editing : PRAKASH SAH

33 comments:

  1. Replies
    1. जी आपका बहुत धन्यवाद

      Delete
  2. जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद-आभार 🙏🙏

    ReplyDelete
  3. वजह बेवजह की कई बार बहुत बढ़ी वजह बन जाती है ... क्या बात है ...
    सही है ऐसी बेवजह की वजहों को बाहर कर देना ही अच्छा होता है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपने सही कहा। बहुत धन्यवाद आपका

      Delete
  4. बिल्कुल सटीक अभिव्यक्ति ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत धन्यवाद आपका

      Delete
  5. बहुत ही उम्दा और सटीक रचना!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपका बहुत धन्यवाद

      Delete
  6. वाह एकदम सटीक कही आपने...शानदार सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

      Delete
  7. प्रकाश भाई, कई बार बेवजह भी इंसान कितना दुखी हो जाता है इसका बहुत सुंदर विश्लेषण किया है आपने।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ज्योति दी, आपका सहृदय बहुत धन्यवाद-आभार

      Delete
  8. "वजह-वेवजह" की बेहतरीन और सटीक अभिव्यक्ति प्रकाश जी,

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद दी!!!

      Delete
  9. बहुत सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपका शुक्रिया

      Delete
  10. अक्सर देखा है लोगों को

    बेवज़ह की बातों में फँसकर

    रिश्तों को फँसाते......... बहुत सटीक लिखा आपने।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद मित्र !!!

      Delete
  11. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!!!!

      Delete
  12. वाह! अभिव्यक्ति का सघन सम्पुट संवेदना की नमी लिए। बहुत सुंदर शब्द चित्र।

    ReplyDelete
  13. वाह औरसिर्फ वाह प्रिय प्रकाश।जिन्दगी के आबाद और बर्बाद होने की वजह ही होती है।बहुत मर्मांतक संवाद है इस खलनायिका वजह से ☹

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके शब्दों के माध्यम से वहाँ प्रशंसा में की गयी हृदयस्पर्शी आवाज मैं यहाँ बिल्कुल अनुभव कर सकता हूँ। मैं बहुत प्रोत्साहित हुआ। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, दी!!

      Delete
  14. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  15. Waah bhai Kamaal h sabdo me aapke

    ReplyDelete