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Saturday, 5 February 2022

अपना घर - prakash sah


www.prkshsah2011.blogspot.in


तुम्हारे इस शहर में कब तक अपने वजूद के जद्दोजहद में फंसा रहूँगा

एक दशक  बीत जाने  के बाद भी कब तक मैं यहाँ अंजान बना रहूँगा


देखते  ही  देखते  इस  शहर के कई  बागों  में  हजारों नये फूल  खिल  गये

ना जाने मुझे अपने बाग के लिए और कितने बसंत तक इंतज़ार करता रहना पड़ेगा

-प्रकाश साह

05022022


 मेरी कुछ अन्य रचनाएँ....


आपकाे यह रचना कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें। और अगर मेरे लिए आपके पास कुछ सुझाव है तो आप उसे मेरे साथ जरूर साझा करें।     

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

BG P.C. : YourQuote.in

P. Editing : PRAKASH SAH

11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 06 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    Replies
    1. जी अवश्य आऊँगा। आपको सादर धन्यवाद।

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  2. उम्मीद पर दुनिया कायम ।

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    Replies
    1. जी बिल्कुल। धन्यवाद।

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  4. सुंदर रचना

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  5. You have lots of great content that is helpful to gain more knowledge. Best wishes.

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  6. शहरी जीवन में यही मरीचिका उलझाये रखती है सरल इन्सान को।मार्मिक रचना!

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    Replies
    1. वाह! बिल्कुल सही कहा आपने। सरल इंसान उलझा तो रहता ही है।
      सादर धन्यवाद, दी!!

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