पीछले एक साल के अनुभवों को अगर हम छोड़
दें तो इस QUARANTINE शब्द से हम ना के बराबर से वाकिफ
थे.....मैं तो बिल्कुल वाकिफ नहीं था। QUARANTINE शब्द का
शाब्दिक अर्थ यह है कि एक निश्चित दायरे में बंद रहना है.......हाँ, मैं इसे बंद
रहना ही कहूँगा क्योंकि वर्तमान परिस्थिति में यह हमारे इच्छा के अनूकुल नहीं है।
यह सिर्फ कुछ दिनों की बात नहीं थी.......यह कई महिनों चला। ना हम अपने किसी
मित्र, रिश्तेदार से मिल पा रहे थे और ना ही किसी अन्य परिचित व्यक्ति से।............उनका हाल केवल फोन
से ही पता चल पा रहा था। कभी-कभी तो उस वक्त अकेलापन भी महसूस होने लगता था।
अब तो कोरोना की दूसरी लहर भी आ चुकी है
और इसका प्रकोप भी लगातार ज़ारी है...तो इस अनुसार अभी की स्थिति में भी कुछ
ज़्यादा बदलाव नहीं आया है........बल्की बहुत दयनीय स्थिति है। अब फिर लोग अपनों
से मिल नहीं पा रहे हैं....और अगर कोई मिल भी रहा है तो बहुत हिचक-हिचक के मिल रहे
हैं। यह ऐसी महामारी आयी है जो हमें अपनों के बीच में ही शंका पैदा कर दे रही है
कि कहीं उनसे हमें यह बिमारी ना हो जाए। यह सही भी है।
जैसा कि हम हमेशा सुनते आये है कि किसी भी
दुःख, दर्द, बिमारी में अपनों के बीच में रहने से वह मुश्किल समय जल्दी गुजर जाता
है...........पर अभी अगर किन्हीं को कोरोना हो जा रहा है तो उन्हें अपने समिप रख
के उनका ख़्याल रखने में बहुत परेशानी आ रही है। और हम वर्तमान परिस्थिति के
अनुसार उनको एक बंद कमरे में QUARANTINE होने को कह
दे रहे हैं.....और यह सही भी है।
इस तरह उस वक्त उनकी क्या मनःस्थिति होगी
और वो किन-किन ख़्यालों से गुज़र रहे होंगे...य़ह विस्तृत ढ़ंग से बताना आसान नहीं
है।
चलिए फिर भी अगर इस दौरान जब एक पति, अपनी पत्नि को, अपना
हाल बताता है तो क्या कहता है?.....इसपर मैंने उन भावों को कुछ पंक्तियों में
लिखने का प्रयास किया है....
यूँ ही कब तक अकेले मचलते रहेंगे
ख़ामोशी है चारो तरफ,
बेहोशी में जी रहे हैं सब।
कब तक, यूँ ही
हाथों को साफ करते रहेंगे!
अब मेरे होंठ,
तुम्हारे हाथों को
चूमने के लिए मचल रहे हैं।
ये हाथ, कब
तक, यूँ ही
अकेले मचलते रहेंगे।
वो पिछली यादें,
सारी की सारी,
धुँधली हो चुकी हैं,
जो तुम्हारी बाँहों की गर्मी,
मुझे कई दिनों की
सुकून की नींद दी थी।
अब हम अकेले,
कब तक, यूँ ही
करवटें बदलते-टूटते रहेंगे।
हम पास आयें,
इसका बेसब्री से इंतज़ार है।
हाँ, ऐसे
बिछड़े, कब तक रहेंगे!
ये दूरी, अब
ना सही जा रही है।
हम, कब तक ,
यूँ ही
अकेले परेशान होते रहेंगे!!!
ख़ामोशी है चारो तरफ,
बेहोशी में जी रहे हैं सब...
-प्रकाश साह
140421
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