हम सब अपने जीवन में जब भी कोई अनजान व्यक्ती से मिलते है तो उसी
वक्त मन में कुछ सवाल घूमने लगता है और उन सवालों के जवाब के कोशिश में हम लगातार
उलझे रहते हैं। फिर बार-बार मन पूछता है :
कौन हो तुम ?
क्या मैं तुमको जानता हूँ ?
बता दो जरा तुम...
पहचान कैसे हुई
तुमसे
मुझको ?
बता दो जरा तुम
ऐसे कैसे हुआ...
बिना जाने एक दूसरे को
मुलाकातें व बातें हो गई,
वादें-इरादें पक्के हो गएं,
साथ जीवन बिताने की भी ख़्वाहिश हो गई ।
अरे ! कौन-सी जादू किए हो तुम
बता दो जरा तुम...
कौन हो तुम?
तुम कैसे मिले थे,
याद नही !
क्षण भर में ही घूल मिल गए,
खूब हँसी-ठिठोली हो गई ।
यार...कौन हो तुम ?
राज खोलो...
किस दरबार से आए हो तुम ?
बता दो जरा तुम...
छलिए हो या राहगीर,
जो बस...
दो पल के मिलन की खातिर ही
आए हो तुम ।
बता दो जरा तुम...
यही हो ना तुम ?
यही हो ना तुम ? यही हो ना तुम ?
...
...
...
कौन हो तुम ?
क्या मैं तुमको जानता हूँ ?
बता दो जरा तुम...
©ps
READ also : ।। दीर्घ निद्रा ।।
वाह!
ReplyDeleteख़ूबसूरत प्रश्नों का मकड़जाल बुना है.
बधाई एवं शुभकामनायें .
लिखते रहिये.
धन्यवाद रविन्द्र भईया । 🙏 आपने प्रश्नों को महसूस किया। आपकी शुभकामना मार्गदर्शन के समान।
Deleteप्रिय प्रकाश -- सहज सवालों से गुंथी रचना बहुत खूब है | रचना का सार्थक सार भी पहले ही लिख डाला आपने | लिखते रहिये --- ढेरों शुभ कामनाएं आपको | नव वर्ष आपके लिए रचनात्मकता का नया आलोक लेकर आये | सस्नेह --
ReplyDeleteइतनी सुन्दर भावना मेरे और मेरी रचना के प्रति व्यक्त करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद।
Deleteआप भी नव वर्ष में नए मुकाम तक पहुँचे । शुभकामना ।
खूबसूरती से रची गई रचना। किसी अपरिचित से की गई वार्तालाप अच्छी बन पड़ी है। कौन हो तुम... शायद मुझ में ही कहीं हो तुम...
ReplyDeleteलिखते रहें....बधाई प्रकाश जी
आपकी प्रतिक्रिया सदैव ही मुझे उत्साहित करती है। धन्यवाद पुरूषोत्तम जी।
Deleteनव वर्ष की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।
खूबसूरत रचना
ReplyDeleteधन्यवाद नीतू जी।
Deleteमुझे अपनी उस रचना का इंतजार है जो आपको प्रभावित करके मजबूर करदे एक व्याख्यात्मक विचार रखने के लिए। आपकी छोटी प्रतिक्रिया भी मुझे खुश करती है पर उससे ज्यादा होऊँगा।
नव वर्ष की शुभकामना।
वाह्ह्ह....क्या बात है प्रकाश जी..बहुत खूब👌👌
ReplyDeleteअजनबी तो जीवन के हर मोड़ पर मिलते हैं पर शायद कुछ खास होते है जिनसे अपनापन महसूस होता है और ऐसे सवाल जे़हन में आते है।
शायद हर मन के ऐसे ही सवाल होते होगे।
बहुत अच्छी रचना आपकी।
आपकी विवेचना मेरी रचना के लिए एकदम सटीक एवं सुन्दर है। आपने अपनी ख़्यालात व अनुभव मेरे साथ साझा की...जानकर अच्छा लगा। बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी।
Deleteनव वर्ष की शुभकामना।
बहुत अच्छी कविता
ReplyDeleteमन की गहराइयों से उपजी एक कोमल रचना...प्रकाश जी :)
बहुत बहुत धन्यवाद, संजय भास्कर जी ।
Deleteवाह.... बहुत सुन्दर रचना। शुभकामनाएँ प्रकाश जी....
ReplyDeleteलिखते रहिये..
आभार आपका। आपलोग का आशीर्वाद सदैव मेरे लेखनी में सहयोग करेगा। बस यूँ ही मिलता रहे।
Delete