।। दीर्घ
निद्रा ।।
ईश्वर हैं या नही, या फिर होतें विश्वास नामभर मात्र,
हम कठपुतलियाँ है या किसी स्वपन-रूपी चलचित्र का पात्र ।
स्वप्न-रूपी यह संसार ही है,
कोई लम्बे वक्त से सोया है दीर्घ निद्रा में,
स्वप्नो में ही कहानियाँ बुनता,
हम उसके भाँती-भाँती पात्र है ।
हर कदम निर्देशीत करता,
वो जो सोए सोचता है दीर्घ निद्रा में,
ब्रह्मा का वरदान है,
अब न जगेगा वो दीर्घ निद्रा से ।
ऐसी अविश्वसनीय कल्पना टटोलती आती,
होता आभास जैसे कहीं कोई ‘स्वप्नों का कुंभकर्ण’ है ।
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