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Friday, 7 October 2022

है ना अज़ीब | Prakash Sah

 

www.prkshsah2011.blogspot.in



Dear You,


आज शाम के

पाँच बज रहे थें

और

तुम्हारी बातों से लगा

आज तुम

कुछ बुझी सी हो। 

कई दिनों से

मुझे भी

कुछ कहना था तुमसे।

कुछ बातें याद आती है

तुम्हारे लिए,

हर बार सोचता हूँ

कि

सब बोल दूँ तुम्हें।


अच्छा....!!!

एक खूबसूरत बात 

पता है तुम्हें....

मैं

बोल भी देता हूँ

वो सारी बातें

जो सोच रहा होता हूँ

तुमसे बोलने के लिए।

पर

फिर भी लगता है कि

कुछ अधूरा रह गया है

तुमसे बोलने को।


ऐसा क्यूँ होता है?

ये तुमसे भी पूछ लूँ क्या?

ये भी

उसी वक्त

सोचने लगता हूँ।

कितना अज़ीब है ना!!

एक सवाल के जवाब को

ढूँढ़ने में

एक और सवाल 

मेरे पास आ जाता है।

है ना अज़ीब!!!!

-प्रकाश साह

20092022


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आपकाे यह रचना कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें। और अगर मेरे लिए आपके पास कुछ सुझाव हाे तो आप उसे मेरे साथ जरूर साझा करें।     

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

BG P.C. : 

P. Editing : PRAKASH SAH