मेरे लिए...
आरंभ क्या! अंत क्या!
अंत ही आरंभ है,
आरंभ का ही अंत है।
मैं ही आरंभ करूँ, मैं ही अंत करूँ।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘शून्य’ है।
हाँ मैं...
शून्य हूँ...!! फ़कीर हूँ...!!
फ़कीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
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मेरे लिए...
जन्म क्या! मृत्यु क्या!
जन्म ही परमात्मा हैं,
मृत्यु ही परमात्मा हैं।
मैं लिन हूँ, मैं विलिन हूँ।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘अक्षुण्ण’ है।
हाँ मैं...
अक्षुण्ण हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
__--***--__
मेरे लिए...
उजाला क्या! अंधेरा क्या!
दीये का ही जला हूँ,
दीये के ही तले हूँ।
मैं ही अकेला हूँ, मैं ही बाती हूँ।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘पूर्ण’ है।
हाँ मैं...
पूर्ण हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
__--***--__
मेरे लिए...
अपना क्या! पराया क्या!
दुनिया ही अपना है,
पराया कोई जन नहीँ।
मैं ही पास दिखूं, मैं ही दूर दिखूं।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘एकात्म’ है।
हाँ मैं...
एकात्म हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
__--***--__
मेरे लिए...
कम क्या! ज्यादा क्या!
कम ही ज्यादा है,
ज्यादा से ही दूरी है।
मैं अर्पित हूँ, मैं समर्पित हूँ।
एकल सत्य है – मैं एक 'फ़क़ीर' हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘क्षणिक’ है।
हाँ मैं...
क्षणिक हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
__--***--__
मेरे लिए...
अमीरी क्या! गरीबी क्या!
स्वयं ही गरीबी ओढ़ी,
स्वयं ही अमीरी छोड़ी।
मैं ही कारण हूँ, मैं ही साधारण हूँ।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘विचार’ है।
हाँ मैं...
विचार हूँ....!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
__--***--__
मेरे लिए...
घर क्या! वन क्या!
वन में ही जीवन है,
स्वयं के ही खोज में।
मैं ही भ्रमण करूँ, मैं ही भजन करूँ।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘अनिश्चित’ है।
हाँ मैं...
अनिश्चित हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
__--***--__
मेरे लिए...
न्याय क्या! नियम क्या!
स्वभाव ही नियम है,
बदलाव ही न्याय है।
मैं ही आकार लूँ. मैं ही स्वीकार लूँ
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘प्रकृति’ है।
हाँ मैं...
प्रकृति हूँ....!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
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मेरे लिए...
वचन क्या! प्रवचन क्या!
सिध्दांत ही वचन है,
प्रवचन में ही व्यक्तित्व है।
मैं ही तरंग हूँ, मैं ही बेरंग हूँ।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ
मेरे लिए...
सब ‘प्रत्यक्ष’ है।
हाँ मैं...
प्रत्यक्ष हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
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मेरे लिए...
धूप क्या! छाँव क्या!
धूप ही कर्म है,
छाँव ही कर्म का फल है।
मैं ही सूत्र हूँ, मैं ही उन्मुक्त हूँ।
एकल सत्य है – मैं एक ‘फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
सब ‘आशीष’ है।
हाँ मैं...
आशीष हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!
©prakashsah
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