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Tuesday, 26 November 2019

फ़क़ीर हूँ (Fakir hunh)........-prakash sah


फ़क़ीर हूँ - FAKIR HUNH - Prakash sah - UNPREDICTABLE ANGRY BOY -  www.prkshsah2011.blogspot.in


  
मेरे लिए...
   आरंभ क्या! अंत क्या!
   अंत ही आरंभ है,
   आरंभ का ही अंत है।
   मैं ही आरंभ करूँमैं ही अंत करूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
        सब शून्य’ है।
हाँ मैं...
     शून्य हूँ...!!        फ़कीर हूँ...!!
     फ़कीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   जन्म क्या! मृत्यु क्या!
   जन्म ही परमात्मा हैं,
   मृत्यु ही परमात्मा हैं।
   मैं लिन हूँमैं विलिन हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब अक्षुण्ण’ है।
हाँ मैं...
     अक्षुण्ण हूँ...!!    फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   उजाला क्या! अंधेरा क्या!
   दीये का ही जला हूँ,
   दीये के ही तले हूँ।
   मैं ही अकेला हूँमैं ही बाती हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब पूर्ण’ है।
हाँ मैं...
     पूर्ण हूँ...!!         फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   अपना क्या! पराया क्या!
   दुनिया ही अपना है,
   पराया कोई जन नहीँ।
   मैं ही पास दिखूंमैं ही दूर दिखूं।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब एकात्म’ है।
हाँ मैं...
     एकात्म हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   कम क्या! ज्यादा क्या!
   कम ही ज्यादा है,
   ज्यादा से ही दूरी है।
   मैं अर्पित हूँमैं समर्पित हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक 'फ़क़ीर' हूँ।
मेरे लिए...
         सब क्षणिक’ है।
हाँ मैं...
     क्षणिक हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   अमीरी क्या! गरीबी क्या!
   स्वयं ही गरीबी ओढ़ी,
   स्वयं ही अमीरी छोड़ी।
   मैं ही कारण हूँमैं ही साधारण हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
                                      सब विचार’ है।
हाँ मैं...
     विचार हूँ....!!     फ़क़ीर हूँ...!!
                                  फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   घर क्या! वन क्या!
   वन में ही जीवन है,
   स्वयं के ही खोज में।
   मैं ही भ्रमण करूँमैं ही भजन करूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब अनिश्चित’ है।
हाँ मैं...
     अनिश्चित हूँ...!!  फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   न्याय क्या! नियम क्या!
   स्वभाव ही नियम है,
   बदलाव ही न्याय है।
   मैं ही आकार लूँ. मैं ही स्वीकार लूँ
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब प्रकृति’ है।
हाँ मैं...
     प्रकृति हूँ....!!     फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
   वचन क्या! प्रवचन क्या!
   सिध्दांत ही वचन है,
   प्रवचन में ही व्यक्तित्व है।
   मैं ही तरंग हूँमैं ही बेरंग हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ
मेरे लिए...
         सब प्रत्यक्ष’ है।
हाँ मैं...
     प्रत्यक्ष हूँ...!!      फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!

                    __--***--__


मेरे लिए...
                                         धूप क्या! छाँव क्या!
   धूप ही कर्म है,
   छाँव ही कर्म का फल है।
   मैं ही सूत्र हूँमैं ही उन्मुक्त हूँ।
   एकल सत्य है – मैं एक फ़क़ीर’ हूँ।
मेरे लिए...
         सब आशीष’ है।
हाँ मैं...
     आशीष हूँ...!!    फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!!     फ़क़ीर हूँ...!!
                                                                         ©prakashsah



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Friday, 8 November 2019

कल्पतरू - prakash sah


कल्पतरू (KALPTARU) - Prakash sah - UNPREDICTABLE ANGRY BOY - www.prkshsah2011.blogspot.in


‘मेरा जन्म हुआ है’
इसका आभास हुआ जब...
एक स्वप्न देखा मैंने
सुखी गृहस्थ बसाने का।


रोजमर्रा का साक्ष्य
वही बदरंग कंक्रीट दृश्य
जहाँ घर ‘कल्पतरू’ के
छाँव में ना था
वहाँ खुशहाली कैसी आएगी?
जब दुःख के घड़ी में
इसे हरने वाली
हरियाली ना होगी।

निश्चल मन,
शुद्ध विचार,
प्रेम भाव,
या जग से परे कुछ कल्पित भाव
की इच्छा पूर्ती करने वाला
एक वृक्ष ही है
एक ‘कल्पतरू’ ही है।

                 जन्म, प्रकृति के लिए हुआ है
और प्रकृति से ही मेरा अस्तित्व है।
हरा रंग हरियाली का
सुखी गृहस्थ का मंत्र है।

‘मेरा जन्म हुआ है’
इसका आभास हुआ जब...
एक स्वप्न देखा मैंने
सुखी गृहस्थ बसाने का।
           ©prakashsah


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Saturday, 2 November 2019

"सेवा का श्रृंगार देख" : छठ व्रतियों के सहायता के लिए एक कार्यक्रम - prakash sah



आप सभी को छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ


इस वर्ष छठ पूजा के लिए मैंने दो दिन तक श्रमदान करके इस महापर्व में सहयोग किया है। यह पूर्ण रूप से सेवाभाव का कार्यक्रम था। वाकई  यह अनुभव बहुत सुन्दर था।

इस कार्यक्रम में फलों व छठ पूजा सामग्रियों को लोगों के लिए सस्ते मूल्य में उपलब्ध कराना था। इसका मुख्य उद्देश्य था कि बाजार मूल्य को नियंत्रित किया जाए जिससे कि लोगों को फल सस्ते मूल्य पर उपलब्ध हो। " Selling AT NO PROFIT, NO LOSS"
अक्सर त्योहारों में फल व्यापारियों द्वारा फलों को अनुचित मूल्य पर बेचा जाता है। इस महंगाई के कारण छठ व्रतियों को इस महापर्व को करने में कठिनाईयाँ आती हैं। और देखा भी गया है कि इस कार्यक्रम के वजह से फलों का बाजार मूल्य नियंत्रित रहता है।

यह कार्यक्रम पिछले पाँच वर्ष से 'हिन्दु हाई स्कूल, हजारीबाग' में आयोजित होता आ रहा है। मैं पिछले वर्ष से इसमें योगदान दे रहा हूँ परंतु इस वर्ष पूर्ण रूप से समर्पित था।

इस सेवाभाव के कार्यक्रम के उपरांत जिन अनुभवों को मैंने कमाया है उसको एक छोटी-सी रचना में प्रस्तुत कर रहा हूँ...

सेवा का श्रृंगार देख (SEVA KA SHRINGAR DEKH) - Prakash sah - UNPREDICTABLE ANGRY BOY www.prkshsah2011.blogspot.in

।। सेवा का श्रृंगार देख ।।

                                            -प्रकाश साह

सेवा का श्रृंगार देख

मेहनत का भार लेकर
मुख पे एक मुस्कान देख

सेवा का श्रृंगार देख

चैन की नींद लेकर
नये सवेर का आरंभ देख

सेवा का श्रृंगार देख

मुश्किलों में स्वयं को
जन-जन के पास देख

सेवा का श्रृंगार देख

अचानक अपने जीवन को
लक्ष्य में बदलते देख

सेवा का श्रृंगार देख

मेहनत का भार लेकर
मुख पे एक मुस्कान देख...

©prakashsah


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