नदी की जलधारा निरंतर
अपने पूरे वेग में बहती है
जब, घने वनों के छाँव से
इनके चरणस्पर्श करके
आशीष में कुछ बूंदे लेकर
सागर से मिलने जाती है।
अनेक बाधाओं को
अपने कोमल बर्ताव से
आंचल में शामिल करके
मीठे मीठे अनुभव सहेजकर
सागर के 'खारा' ज़ख्म को
थोड़ा-सा कम करने जाती है।
जीवन जो आश्रित है
उनको अपना संतान मानकर
भू-माता अपने गर्भ में
'अमृत' को संभाले रखी है।
किनारे को सागर के चोट से
'खारा' दोष से मुक्त रखने के लिए
नदी निरंतर आंदोलन करती रहती है।
- ©ps प्रकाश साह
***
अगर आपको मेरा ब्लॉग अच्छा लगा तो कृप्या इसे फॉलो और सब्सक्राइब करें