।। मेरा देश कहता है कुछ ।।
मेरा देश कहता है कुछ
कदम-कदम पे विविधता जिता है मेरा देश।
घूम न सका पूरा देश तो क्या हुआ,
किसी और के यादों से घूमता हूँ सारा देश।
जब खुला आकाश रहता हूँ,
किस रंग में हूँ मैं,
ये भी ना पहचान सकूँ मैं।
जब-जब मैं भंग हुआ,
तेरा रंग हरा, मेरा रंग केसरिया
हर पल ढूँढ़ता रहता हूँ मैं।
“हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई
ये पुरानी बात है
हम इससे पहले एक सच्चा इंसान है
चलो हम एक दूसरे का
अपमान नहीं, मान करें
मान करें, मान करें।
एक सच्चा इंसान बने
इंसान बने, इंसान बने।
©ps
ऐसा कमाल का लिखा है आपने कि पढ़ते समय एक बार भी ले बाधित नहीं हुआ और भाव तो सीधे मन तक पहुंचे !!
ReplyDeleteअगर किसी एक व्यक्ति तक भी मेरा भाव पहुँचा तो मैं सफल हुआ। धन्यवाद।
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