तुम्हारे इस शहर में कब तक अपने वजूद के जद्दोजहद में फंसा रहूँगा
एक दशक बीत जाने के बाद भी कब तक मैं यहाँ अंजान बना रहूँगा
देखते ही देखते इस शहर के कई बागों में हजारों नये फूल खिल गये
ना जाने मुझे अपने बाग के लिए और कितने बसंत तक इंतज़ार करता रहना पड़ेगा
05022022
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 06 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
जी अवश्य आऊँगा। आपको सादर धन्यवाद।
Deleteउम्मीद पर दुनिया कायम ।
ReplyDeleteजी बिल्कुल। धन्यवाद।
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteजी धन्यवाद!!
DeleteYou have lots of great content that is helpful to gain more knowledge. Best wishes.
ReplyDeleteशहरी जीवन में यही मरीचिका उलझाये रखती है सरल इन्सान को।मार्मिक रचना!
ReplyDeleteवाह! बिल्कुल सही कहा आपने। सरल इंसान उलझा तो रहता ही है।
Deleteसादर धन्यवाद, दी!!