मेरा मानना है कि प्रत्येक आँखों में एक अलग युग होता है यानी कि सभी का देखने का नजरिया अलग होता है। किसी के लिए जो दर्द है वही किसी के लिए सुकून का वज़ह। बस सिर्फ इनके गुणों में अंतर होता है। यही अंतर हमसब को वर्तमान में अलग-अलग युगों का चश्मा लगाने का मौका देता है।
चली पढ़ीं अब #आपन भाषा #भोजपुरी में एगो हमार नया रचना......
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ई ज़माना बा बड़ा ख़राब...
-प्रकाश साह
ई ज़माना बा बड़ा ख़राब
एमे बड़ा बा दबाव
तू जेतना बोलबअ
ओतना ही बोलेम,
ज्यादा बोले में बा
काम ख़राब तमाम
ई ज़माना बा बड़ा ख़राब...2
एमे बड़ा बा दाँवपेंच
चाणक्या भी बानी फेल,
कलयुग के काल में
सभन के बा
ईमान ख़राब तमाम
ई ज़माना बा बड़ा ख़राब...2
बुजुर्ग कहके गईनी
झूकला में ना बा
कौनो शरम, लेकिन
अब तू जेतना झूकबअ
ओतना तोड़ल जईबअ
ई ज़माना बा बड़ा ख़राब...
ई ज़माना बा बड़ा ख़राब...
ई ज़माना बा बड़ा ख़राब...
©prakashsah
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जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-12-2019) को "आस मन पलती रही "(चर्चा अंक-3551) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत-बहुत आभार आपका।
Deleteसुन्दर :)
ReplyDeleteधन्यवाद महाशय।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी धन्यवाद आपका।
Deleteबढिया
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteबहुते नीमन! आगहूँ ऐसहीं लिखते रहीं.
ReplyDeleteजी ठिक बा..! बस राउर आशीर्वाद मिलते रहे के चाहीं। धन्यवाद।
DeleteAti Sundar ba bhaiya.
ReplyDeleteधन्यवाद भाई।
DeleteBhute bdhiya ba ho
ReplyDeleteतहार बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteसादर
जी धन्यवाद!
Deleteबहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteजी धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteजी धन्यवाद!
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