।। माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।।
'भोजपुरी' आपन भाषा
जनम जाहाँ लेनी, ओकरा के कहिया देखेम,
दू दिन रहेनी, तीन दिन रहेनी
फेर लउट के, इहे शहर में आ जानी ।
जेकर तनिसा लोग ही हमरा के जानलन
अाउर एही से हम, ई शहर के भी ठीक से ना पहचननी ।
जेकर कर्ज बा, ओकरा के ना चुका के
दोसरा के चुकावत बानी,
अब ढ़ेर हो गईल, अब ना होई ई हमरा से ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
बाबा से पुछनी, नानी से पुछनी
का साच में हम ईहें जनम ले ले बानी ?
सभे कहलन, हाँ बबुआ तु ईहें के बारअ ।
पर मनवा में चवनीया मुस्की दे के कहनी-
कइसे ईहा ना रह के भी, हम एजा के हो गईनी !
अब एकरे गोद में जिए के बा, एकरे खेत में सोए के बा ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।
आपन लोग के बीच में उठे-बैठे के मन करत बा,
आपन मिसरी जैसन भाषा में बात करे के जीभ कहत बा ।
इ जहिया से पता चलल बा, हम भोजपुरीयन हईं,
तब से पटर-पटर हिन्दी-इंग्लिश में बोल के थक गईल बानी ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकाव के जात बानी ।
केतना बरस बाद इ शुभ मुहूर्त आ ही गईल,
केतना बेरा जोह-जोहला के बाद, अईसन सूरज उग ही गईल ।
अबकी ठाठ से रहेम, अबकी लमहर छुट्टी काट के रहेम,
सड़क-सड़क, गाँव-गाँव, आपन पूरा शहर घूमे के आवत बानी,
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।
पानी-कादो में उछल-उछल के खेलत बानी,
छोट बउवा-बबुनी के फुसला-फुसला के बोलावत बानी,
आवअ, देखअ, एमे छोट-छोट मछरिया बा,
आ के ले जा, पकहिअ चुलहवा पर कहके आपन माई से ।
उ सभन के बुरबक बना के, पटक-पटक के कादो में गिरावत
बानी ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी...
©prakashsah
nice lines
ReplyDeleteThankyou Bhai.
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