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Thursday, 24 November 2016

प्रकृति का इंसान | PRAKASH SAH

🌳👫  प्रकृति का इंसान  👫🌳

संस्कृतियाँ, परंपराएँ, आदर-सम्मान

इन सब में समा जाते हैं इंसान।

परिस्थितियाँ, परेशानियाँ, दुख-दर्द

इन भावनाओं को कभी ज़ाहिर नहीं करते हैं मर्द।

क्या चाहते हैं इंसान, क्या चाहते हैं ये मर्द?

कब मिलेगा जीने को बस दो घूँट का पल?

इन्हीं सवालों में, पारिवारिक जीवन में

फँस जाते हैं हम इंसान ।

ब्रह्मचर्य जीवन जीने का ईमान

जल्दी कोई ना चाहता है इंसान ।

क्या होगा इस संसार का?

ना जाने कब समझेगा समाज?

दूसरों को मदद करके ही, इंसान बनते हैं महान 

इंसान बनते हैं महान, इंसान बनते हैं महान...




वन, झील, नदी और कुछ खड़े पहाड़

पूछते हैं मूल सोच का सवाल -

"प्रकृति हैं हम, प्रकृति से ही हो तुम,

कब बनोगे सच्चे मायने में तुम इंसान?"



प्रकृति ही है वो, जिससे भगवान बुद्ध हैं जुड़े

पीपल का पेड़ ही है वो, जिससे ज्ञान के पत्ते हैं गिरे।



सारे प्रथाओं-गाथाओं का एक ही है स्रोत,

इंसान के दिमाग से ही, होता इसका भोर ।

वीनतम रचनाओं का निर्माण फिर से होगा,

प्रकृति के प्राणीयों में से वो इंसान ही होगा

वो इंसान ही होगा, वो इंसान ही होगा...
©ps




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3 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. वाह! संदेशपरक ख़ूबसूरत रचना. लिखते रहिये. अच्छा लिखते हैं आप. बधाई एवं शुभकामनाएं .

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद +Ravindra Singh Yadav भाईजी ।
      मुझे आपकी प्रतिक्रिया का हमेशा इंतजार रहता है....सत्यता झलकती है।
      बेहद खुशी हुई।

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