।। माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।।
'भोजपुरी' आपन भाषा
जनम जाहाँ लेनी, ओकरा के कहिया देखेम,
दू दिन रहेनी, तीन दिन रहेनी
फेर लउट के, इहे शहर में आ जानी ।
जेकर तनिसा लोग ही हमरा के जानलन
अाउर एही से हम, ई शहर के भी ठीक से ना पहचननी ।
जेकर कर्ज बा, ओकरा के ना चुका के
दोसरा के चुकावत बानी,
अब ढ़ेर हो गईल, अब ना होई ई हमरा से ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।