।। दो चेहरें ।।
जिंदगी की एक पहेली है
चेहरा ही जीवन की एक सहेली है ।
क्यूँ घूमते फिरते सब दो चेहरें में ?
अब बस यही एक नई मुश्किल पहेली है।
वास्तव मे होतें एक ही इंसान हैं,
बात करतें वही हैं,
पर दिखतें ‘दो राही’ हैं,
शायद इसी को कहते ‘दो चेहरें’ हैं।
चेहरे के बिना आईना का क्या हो !
आईना के बिना खूबसूरत चेहरों का क्या हो !
इन्ही चेहरों पर सभी का ‘चेहरा पे चेहरा’ है,
एक चेहरा पर किसी का ना दिल ठहरा है।
दो चेहरों की होती है उपयोगीता –
एक दिखाती है अगर उदासीनता,
तो दूसरी दिखाती है प्रसन्नता।
एक को सजाते-सँवारते है कोई अपनो के खातिर,
तो दूसरी को सजाते-बिगाड़ते है
अपने तरिके से जीने के खातिर ।
माना...अगर एक पे होता है क्रोध,
तो दूसरी पे आती है मोह ।
कुछ-कुछ समझ कर आता है होश,
फिर हम, एक दूसरे पे दिखाते है रोष ।
यही है मेरे दोस्त, दो चेहरों का दोष ।
समझ तो पूरी है...
पहेली का हल अब भी कुछ अधुरी है ।
क्यों सबको एक चेहरा में रहने से दूरी है ?
अब एक ही समझदारी है,
दूसरो को दे दूँ इस पहली को
इसमें ही शायद मेरी बहादुरी है
इसमें ही शायद मेरी बहादुरी है...
©ps