।। मेरा देश कहता है कुछ ।।
मेरा देश कहता है कुछ
कदम-कदम पे विविधता जिता है मेरा देश।
घूम न सका पूरा देश तो क्या हुआ,
किसी और के यादों से घूमता हूँ सारा देश।
जब खुला आकाश रहता हूँ,
किस रंग में हूँ मैं,
ये भी ना पहचान सकूँ मैं।
जब-जब मैं भंग हुआ,
तेरा रंग हरा, मेरा रंग केसरिया
हर पल ढूँढ़ता रहता हूँ मैं।
“हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई