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Wednesday, 18 December 2019

ये तुम्हारा समर नहीं, ‘अगर-मगर’ वाला भ्रम है.......prakash sah


#CAB ये अंग्रेजी के तीन अक्षरों को देखकर मुझे सबसे पहले इतना ही समझ आया कि जो पीड़ित हैं वो Cab लेकर भारत आ जाएं उनका ख़्याल भारत रखेगा। और जो घुसपैठिए हैं वो यही Cab लेकर वापस भारत से चले जाएं वर्ना भारतीय सरकार आपकी विदाई के लिए प्रोपर समारोह कर देगी।

हमसब जानते है कि अगर आपके पास ज्ञान अर्जित है तो आप सभी परेशानियों का हल स्वतः ढूँढ लेते हैं। पर मुझे बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारे देश के कुछ विश्वविद्यालयों के छात्र तात्कालिक विवाद (जो मुझे लगता है कि यह विवाद ही नहीं है) का समाधान नहींसिर्फ विरोध करना चाहते हैं। जिससे की देश में अराजकता की स्थिति बनी रहे। 
ये छात्र अभी राजनीति के कठपुतली मात्र हैं....जो संवाद करना नहीं जानते। ये भविष्य के भय को दिखाना चाह रहें...लेकिन वर्तमान के पीड़ित को नहीं देखना चाहते। ये छात्र उन षड्यंत्रकारी आत्माओं (राजनीतिज्ञ) के लिए शरीर का काम कर रहे हैं। और उन राजनीतिज्ञों को इस विरोध के दौरान इन छात्रों के हालात से भी मतलब नहीं है।

मुझे लग रहा है कि ये छात्र नहीं समझ पाएं कि किसी ख़ास समुदाय के हक के लिए उनका यह समर (युद्ध) नहीं है.....यह तो उन राजनीतिज्ञ द्वारा फैलाया गया अगर-मगर’ वाला भ्रम है। जो वे इस भ्रम के जाल में भ्रमित हो गये हैं।

आज की मेरी यह एक छोटी रचना उन छात्रों पर व्यंग्य है...जो भ्रमित हैं। मैंने इसमें उनकी तात्कालिक सोच को लिखा है...अपनी व्यंग्यात्मक विचार के साथ।


चलिए अब पढ़िए आज की मेरी रचना को....


ये तुम्हारा समर नहीं, ‘अगर-मगर’ वाला भ्रम है.......


ye tumhara samar nahi agar magar wala bhram hai - prakash sah - Unpredictable Angry Boy -  www.prkshsah2011.blogspot.com

                                 (1)
आँख मूँद ये विवाद देखो

संवाद नहींसिर्फ विरोध की आवाज़ सुनो।

पीड़ित को नहींप्रताड़ित होने का भय जानो

कानून लायक है या नहीं????? ये नहीं...

मेरी भीड़ देखो!!

भीड़ में सिर्फ छात्र हैं...,यही तुम मानो!

और कुछ नहीं

आँख मूँद ये विवाद देखो।


                                 (2)
शरीर है किसी और काआत्मा है किसी और का

कठपुतली बन गया ज्ञान...,अभी मत तू ये जान!!

चाहे बन जाए देश श्मशान।

ओ...ओह!! अल्हड़ है अभी तुम्हारा ज्ञान...

ये तुम्हारा समर नहीं, ‘अगर-मगर’ वाला भ्रम है।

©prakash sah


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18 comments:

  1. LOVED IT BRO❤ THANKS FOR YOUR RESPONSE.

    ReplyDelete

  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार आपका श्वेता दी! मेरी बातों को और लोग तक पहुंचाने के लिए...
      धन्यवाद!

      Delete
  3. शरीर है किसी और का, आत्मा है किसी और का

    कठपुतली बन गया ज्ञान...,अभी मत तू ये जान!!

    चाहे बन जाए देश श्मशान।

    ओ...ओह!! अल्हड़ है अभी तुम्हारा ज्ञान...

    ये तुम्हारा समर नहीं, ‘अगर-मगर’ वाला भ्रम है। एम्दा रचना के साथ साथ्ज्ञ एक संदेश भी है उन भ्रम‍ितों के ल(िए जो अराजकता का वाहक बन गए

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद, अलकनंदा जी! मैं भी आपकी लेख का प्रशंसक हूं।

      Delete
  4. समयानुकूल सही संदेश देती रचना।
    बहुत बढिया।

    ReplyDelete
  5. Thanks for making me a part of it Bhai
    Always supports you

    ReplyDelete