जीवन में उतार चढ़ाव लगा रहता है...यह सत्य ही है। परिस्थितियाँ एकसमान कभी नहीं रहती है और कभी रह भी नहीं सकती है....हमें ऐसा कभी सोचना भी नहीं चाहिए।
मुझे लगता है एक बात पर और ध्यान देना चाहिए कि हमसब के अंदर एक ‘हनुमान’ जरूर रहतें हैं बस हमें ‘जाम्बवंत’ जैसे किसी स्मरणकर्ता की जरूरत होती है जो आपकी शक्ति को पुनर्स्मरण कराए। क्योंकि अनिच्छित परिस्थितियों के कारण हम शायद स्वयं को भूल जाते हैं।
चलिए अब बढ़ते है रचना की ओर जो इसी विषय को ध्यान में रखकर लिखी गई हैं...
Please...must watch the video is given below at the end of this post.
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( मैं पहली बार अपनी किसी रचना को अपने आवाज में रिकार्ड कर के यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। विडियो लिखित रचना के नीचे दिया गया है.....जरूर देखें और आपसब अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएँ भी दें )
।। तय कोई सफर नहीं ।।
तय कोई सफर नहीं
अगर भय कहे-
मैं तुममें हूँ
तो निश्चय है
उसका कोई घर नहीं।
तय कोई सफर नहीं...
तू देख अपने अगल-बगल
कतारबद्ध लोगों का
भीड़ चल रहा
तू वहाँ एक अकेला खड़ा है
भय से कोई मुक्त नहीं
तय कोई सफर नहीं...
केवल सुख की अगर मांग है
भय की ट्रेन लगी है तेरी
तुझे छोड़नी है, या पकड़नी है
तय तुझे करना है
सफर तुझे करना है
तय कोई सफर नहीं
तय कोई सफर नहीं...
- ©ps प्रकाश साह
विडियो को जरूर देखें...👇👇👇
मैं पहली बार अपनी किसी रचना को अपने आवाज में रिकार्ड कर के यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। नीचे दिए गए विडियो को जरूर देखें और आपसब अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रियाएँ भी दें। धन्यवाद!
watch the video (use Earphone)...👇👇👇
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