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Saturday, 29 July 2017

माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी | भोजपुरी कविता | PRAKASH SAH

 ।। माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।। 

'भोजपुरी' आपन भाषा

जनम जाहाँ लेनी, ओकरा के कहिया देखेम,
दू दिन रहेनी, तीन दिन रहेनी
फेर लउट के, इहे शहर में आ जानी ।
जेकर तनिसा लोग ही हमरा के जानलन
अाउर एही से हम, ई शहर के भी ठीक से ना पहचननी ।

जेकर कर्ज बा, ओकरा के ना चुका के
दोसरा के चुकावत बानी,
अब ढ़ेर हो गईल, अब ना होई ई हमरा से ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।

बाबा से पुछनी, नानी से पुछनी
का साच में हम ईहें जनम ले ले बानी ?
सभे कहलन, हाँ बबुआ तु ईहें के बारअ ।
पर मनवा में चवनीया मुस्की दे के कहनी-
कइसे ईहा ना रह के भी, हम एजा के हो गईनी !
अब एकरे गोद में जिए के बा, एकरे खेत में सोए के बा ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।

आपन लोग के बीच में उठे-बैठे के मन करत बा,
आपन मिसरी जैसन भाषा में बात करे के जीभ कहत बा ।
इ जहिया से पता चलल बा, हम भोजपुरीयन हईं,
तब से पटर-पटर हिन्दी-इंग्लिश में बोल के थक गईल बानी ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकाव के जात बानी ।

केतना बरस बाद इ शुभ मुहूर्त आ ही गईल,
केतना बेरा जोह-जोहला के बाद, अईसन सूरज उग ही गईल ।
अबकी ठाठ से रहेम, अबकी लमहर छुट्टी काट के रहेम,
सड़क-सड़क, गाँव-गाँव, आपन पूरा शहर घूमे के आवत बानी,
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।

पानी-कादो में उछल-उछल के खेलत बानी,
छोट बउवा-बबुनी के फुसला-फुसला के बोलावत बानी,
आवअ, देखअ, एमे छोट-छोट मछरिया बा,
आ के ले जा, पकहिअ चुलहवा पर कहके आपन माई से ।
उ सभन के बुरबक बना के, पटक-पटक के कादो में गिरावत बानी ।
जौन माटी में हम जनम ले ले बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी ।

अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी,
अब उहे माटी के कर्ज चुकावे के जात बानी...
©prakashsah


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