।। कम-से-कम मार्गदर्शक तो बना ।।
रात
बित जाए कि दिन बित जाए,
फर्क
ना पड़े कौन क्या कहे कि हम क्या रह गएं।
तु भी तो कभी वही था, जो हम आज हैं,
‘राज’
राज रह गया जब हम दोनो चाह गएं।
किस
ओर मैं बढ़ गया राह का न पता चला,
तुझे
उस ओर देखा तो राह बदल डाला।
इतना
तो पता चला जिस राह पे तु लगातार बढ़ा,
उस
राह से मुझे मेरी मंजिल कभी सही ना मिला।
तु
गलत था या सही था,
इसमें
अब मैं समय बर्बाद नही करता।
तु
मेरे जीवन का आदर्श नहीं तो
कम-से-कम
मार्गदर्शक तो बना।
©ps
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