...
प्रेम का जंगल बोया था हमने,
सबने अपने जरूरतों के हिसाब से...
...इसका इस्तमाल किया ।
इन्होने....
इसके,
बुरे हालातों में......एक आँसू न बहाया
शायद कहीं...
उन आंसूओं से
कोई प्रेम के बिजें......
.............. उग आतें ...............
...
तो हमे...
प्रेम के जंगल को
प्रेम के जंगल को
कसके लिपटकर
खड़ा ना होना पड़ता..,
फिर से
"चिपको आंदोलन" की शुरूआत को
सोचना न पड़ता ।
©PS
सुस्वागतम
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
लिखते रहें
जी..,बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteवाह!!बहुत खूब ।
ReplyDeleteशुक्रिया शुभा जी ।
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