तुम्हें, हम भूल गयें, ऐसा अभी हम कहने वाले ही थे
श्मशान में भीड़ है, अरे! हम अख़बार में ये क्या पढ़ रहे हैं
जब चुनाव था, शायद तुम्हें रिश्वत से भगाया गया था
तुम्हें उकसाया जा रहा, शायद वैक्सीन के दलाल कूद पड़े हैं
हम एक कमरे में बंद सिर्फ तुम्हें ही लिखे जा रहे हैं
वो तुम्हीं वज़ह हो कि शहर-के-शहर बंद किए जा रहे हैं
जब तुम छूप-छूप के देखती हो, किसी सांसों के सहारे
केवल हम ही नहीं, सब मुँह छुपाए तुमसे भागे जा रहे हैं
तुम्हें, हम भूल गयें, ऐसा अभी हम कहने वाले ही थे...

Shi likhe ho bhai
ReplyDeleteधन्यवाद भाई🙏🙏
Deleteअति सुन्दर....
ReplyDeleteजी आभार 🙏🙏
Deleteयह रचना मुझे बहुत अच्छी लगी.
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